रामचरित मानस का पाठ भाग 1 | Ram Charit Manas Path Bhag 1

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Ram Charit Manas Path Bhag 1  by माताप्रसाद गुप्त - Mataprasad Gupta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८ .............. रामचरितमानस का पाठ (२) सं० १७६२ की प्रति-इसकी समाप्ति की पुष्पिका इस प्रकार है सं० १७६९ समये अपषाढ़ सासे सुकुल पक्ष पंचस्यां। लिखिते फेरू राजपूत । जो देखा सो लिखा मम दोषों न दीयते । सुममस्तु । «प्रति के कुछ अन्य कॉंडों के अंत में भी प्राय: इसी प्रकार की पुष्पिका दी हुई है । केवल तिथियों सें अन्तर है । तिथि के साथ वार या अन्य कोई ऐसा विस्तार कहीं नहीं दिया हुआ है जिससे गणना द्वारा विधियों की शुद्धता देखी जा सके । प्रति प्राचीन झवश्य है और इतनी पुरानी हो सकती है । (३) छुक्कनलाल की प्रति--इस प्रति के विसिन्न कॉड सं० १९१६ से १९२१ तक के लिखे हुए हैं। कुछ प्रष्ठों को छोड़कर समस्त प्रति महा- महोपाध्याय स्वर्गीय सुधाकर द्विवेदी के पिता श्री छुपाल द्विवेदी की लिखी : हुई है । पुष्पिकाद्ों में आनेवाली तिथियाँ अपने समस्त विस्तार के साथ दी हुई हैं, किन्तु वे इतनी आधुनिक हैं कि गणना प्राय: झनावश्यक हैं । _. (४) रघुनाथदास की प्रति--यह प्रति मुद्रित है और इसके सम्बन्ध में ऊपर के ढंग की समस्याएं नहीं उठतीं | (५) बंदन पाठक की प्रति--इस प्रति की समस्या भी रघुनाथदास की प्रति जैसी है (७) कोदवराम की प्रति-यह भी मुद्रित है, इसलिए ऊपरवाली समस्याएँ इसके सम्बन्ध में भी नहीं उठतीं; किन्तु, इसकी भूमिका में '... ध्बीजक” पाठ की जिस परम्परा का उल्लेख किया गया है, वह अवश्य विश्वसनीय नहीं ज्ञात होती । इसमें निम्नलिखित दोहे आते हैं, जो ... पूं० शिवलाल पाठक रचित 'मानस-मयंक' सें भी मिलते हैं ब्रह्म . किशोरीद्त्त को ग्रंथकार ही दीन्ह | 'अत्पद्त्त पढ़ि ताहिं,सों चित्रकूट मां लीन्ह । रामप्रसादृहिं सो दइ लहि तातें शिवलाल | दत्त फशीशहिं जानि निज सो दीन्ही सुख माल | शत: परम्परा इस प्रकार है :--१. अंथकार--घ२. किशोरीदृत्त--+ रे. त्पद्त्त--४. रामप्रसाद--५. शिवलाल--६. फणीशदत्त । उसमें यह श--'मानस-मयक, प० २६




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