प्राचीन चिन्ह | Pracheen Chinh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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साँची के पुराने स्तूप रद 'उखड़ गया है। पलस्तर पर रड्ीन चित्रों की एक अनुपम चित्रावली ड्रूर रही होगी; यह लोगों का अनुमान है । घेरे में जो पत्थर के लम्बे-लम्बे टुकड़े ( रेल ) हैं उन पर उनके बनवानेवालों के नाम खुदे हुए हैं । . इससे जान पड़ता है कि स्तूप के चारों ओर जो घेरा है वह पीछे से, क्रम-करम से, बना है। इस पेरे के बन जाने पर फाटक श्रौर फाटकों पर सारण बने हैं। स्तूप के दक्षिणी श्रौर पश्चिमी तेारण गिर पड़े थे | १८८र-प३ इसवी में अँगरेज्ञी गवनेमेंट ने उनकी मरम्मत करा दी; उत्तरी श्रौर पूर्वी फाटकों की फिर से जुड़ाइ कराकर मज़बूत करा दिया; श्रौर स्तूप के चारों तरफ जो घेरा 'है उसकी भी मरम्मत कराकर जहाँ-जहाँ पर वह टेढ़ा हो गया था वहाँ-वहाँ पर उसे सीधा करा दिया । घेरे, फाटकों श्रौर तोरणों में जितनी सूर्तियाँ थीं सबको साफ करा दिया । फाटकों के ऊपर जा तेारण हैं उन पर, झागे श्रौर पीछे दोनों तरफ़, बहुत ही अच्छा काम था ।. एक चावल भर भी जगह ऐसी नथी जहाँ कोई कारीगरी का काम न हो । इन तारणों पर गैतम बुद्ध का जीवनचरित चित्रित था । उनके जीज़न की जितनी मुख्य -मुख्य घटनाये' थीं वे सब पत्थर पर खादकर, मूर्तियों के रूप में, दिखलाई गई थीं । अब भी इस चित्रात्मक “चरित का बहुत कुछ अंश देखने को सिलता है । इसके सिवा बेद्धो के जातक नामक अन्थों में बुद्ध के पहले ५०० जन्में। से सम्बन्ध रखनेवाली जा गाथाये' हूं उनका भी दृश्य इन तारों




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