कृषि में उन्नति | Krishi Me Unnati
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
170.78 MB
कुल पष्ठ :
241
श्रेणी :
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डॉ. सन्तबहादुर सिंह - Dr. Sant Bahadur Singh
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भानु प्रताप सिंह - Bhanu Pratap Singh
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बच. जज चला: खरे
.. अपने पुराने नियम से खेती करें श्र फिर दोनों की उपज अलग अलग तोलकर
. ' देखें और
न :.... विदवास
च् दर बीज श्र कृषि के नए श्रौर अच्छे नियम कितने लाभकारी हैं।
हूसरे पड़ोसी किसानों को भी बतलायें । तब उनको इस बात पर
होगा कि उनके पुराने बीज श्रौर पुराने खेती के ढंग से नए उन्नतिशील
यहू बहुत .आवद्यक हू कि किसान को अच्छी तरह से यह बात समका
दी जावे कि नए ढंग की खेती से उनको न केवल लाभ ही है, कितु पुराने ढंग
की तुरना सें कितना अधिक लाभ है । कभी-कभी लोग कहते हैं कि नए बीज श्र.
पुराने बीज की पंदाबार में अधिक अन्तर नहीं है । जिस खेत में पुराना बीज
चार सन प्रतिबीधा पैदा होता है उसमें नया उन्नत बीज केवल पाँच मन प्रति
बीघा पैदा होता है अर्थात् कुल एक सन का अन्तर पड़ा । यदि पैदावार २० या
५ प्रतिशत बढ़ जाती है और खर्चे में कोई अन्तर नहीं पड़ता तो. किसान के
लाभ में जोकि उसके श्रौर उसके बालबच्चों के पालन-पोषण के लिए खेत से
मिलता है बहु किसी किसी ददा। में दूने से भी अधिक होजाता है । लगान, बीज, खाद,
सिंचाई, जुताई, मजदूरी इत्यादि का खर्चा यदि पैदावार का ७४ या ८० प्रतिशत
तक, जसा प्राय: होता है, हो गया तो किसान की जेब सें बचा हुआ केवल २०
प्रतिदयात पड़ता हूँ अर्थात् ८० रुपया खर्चे करके १०० रुपया पैदा हुआ तो किसान
का लाभ २० रुपया हुआ श्र यदि यहीं ८०] खचं करके १२४५ की. आय
हो जाती हैं तो उसका लाभ र०] से बढ़कर ४४] का हो गया। यद्यपि पैदावार
में केवल २४ ही प्रतिशत की बढ़ती हुई ।
किसान न तो इस बात का सालाना या फ़्सलवार हिसाब रखते हैं कि
जिससे यह विदित हो कि उनके खेतों की पेदाबार में सालाना वृद्धि हो रही है.
या घटी श्रौर न उनको इस बात का पता ही होता है कि बह उन्नति कर रहे
.... हूँ अथवा अवनति । किसान बहुधा यह भी नहीं मानते कि उन्नति बहुत कुछ
. अपने हांथ में है । खेती की उल्लति करनेवालों के लिए यह आवश्यक है कि किसानों
. को स्वावलंस्बन सिखावें श्रौर उनको उन्नति करने के लिए उत्साहित करें । खेती
पर आओंकरिंमसक दुर्घटना जैसे कि वर्षा की कंसी या अतिवृष्टि; समय पर वर्षा का
_ न होंना, फ़सर की व्याधियाँ, पाला, ओले श्रौर बाढ़ का और ऐसी बहुत सी दुर्घ-
टनाओं का ऐसा प्रभाव हौता है कि कभी कभी किसान की सारी चेष्टाएँ बेकार हो
. जाती हैं और फिर उसे मजब्रत अपने पैरों पर खड़े होने का विचार छोड़कर
. प्रारव्ध का भरोसा करना पड़ता है । इससे किसान को यह समझाने की आवश्यकता
. है कि यर्दि दो चार साल तक बराबर खेती के अच्छे नियमों से लाभ होता रहा...
........ तो स्वयं ही उसकी आधथिक दशा इतनी अच्छी हो जावेगी कि वह दुर्घटनाओं को.
........ सहन करने को अच्छी तरह से तैयार हो जांयेंगा और यदि दो एक फ़्सल उसकी
. नष्ट भी हो गई तो भी उसके
उसके पास अपने और अपने बालबच्चों के पालन-पोषण
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