जीने के लिए | Jine Ke Liye
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
91.73 MB
कुल पष्ठ :
372
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)देवकमार्रासिहकों अभी पहली नींद श्राई थी । घबराकर उठे
श्रौर जब सामने टोपघारी साहबकों देखा, तो उनके होश उड़ गये ।
वह बोलनेके लिए कुछ सोच भी न पाए थे कि श्रदली चिल्ला उठा--
“कलट्रर साहब बहाढुरकों तू नहीं पहचानता ? कसा बेवक़्फ़
है ! साहबकों सलाम नहीं करता ?”'
देवक्मार्रासह-- हु-हु-हुजूर, माई-बाप, सलाम ! माफ कीजिए ।”'
“माफ नहीं होटा । टुम नहीं जानटा, गाँव गाँवमें प्लेग, फैला
हाय; टुमारा डरवाजा पर नाबडान है।” छड़ीसे धमकाते हुए
“्रभी नाबडान साफ़ करो, साफ़ करना माँगटा ।”'
“हुजूर, भ्रभी साफ करता हूँ”--देवक्माररसिहकी नींद तो
न जाने कहाँ चली गई थी । वह घरमें फावड़ा लाने घुसे ।
साहब बहादुर झ्ौर भ्ररदली बाहर टहल रहे थे; शभ्रौर झ्रास-पासकी
दीवारोंकी श्राड़में कितने ही लोगोंको हँसीका रोकना मुश्किल हो
रहा था।
देवकमारसिह बाहर शआ्ाए तो साहब बोल उठे--सौ रुपया
जुर्माना । बहुट गंडा ।”'
“हुजूर, ग़रीब शझ्रदमी हूँ, बालबच्चे मर जायेंगे । भ्रभी साफ़
कर देता हूँ। फिर गंदा नहीं रक्खेंगे। जुर्माना माफ कर दें ।
दोहाई हुजूरकी ! ”--देवकमारसिंह साहबका पैर पकड़ना चाहते थे ।
“हटो हटो, नहीं माफ होगा । पुलिसका नौकरी किया हांय,
टुम छे रूपया पेन्सन पाटा हू; जुर्माना डेना होगा ।”
“सरकार, ग़रीबपरवर, श्रब कसूर नहीं होगा । एक कसूर माफ ।””
“्रच्चा, एक बार छोड डेटा हाय । नाबडान शअ्रभी साफ करो ।”
देवकूमारसिह फावड़ा लेकर नाबदानकी नांदकी शोर बढ़े ।
उसमें गंदा पानी भरा था। सोच रहे थे--क्या करें । इतने
में 'साहब' बोले--
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