जीने के लिए | Jine Ke Liye

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Jine Ke Liye by राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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देवकमार्रासिहकों अभी पहली नींद श्राई थी । घबराकर उठे श्रौर जब सामने टोपघारी साहबकों देखा, तो उनके होश उड़ गये । वह बोलनेके लिए कुछ सोच भी न पाए थे कि श्रदली चिल्ला उठा-- “कलट्रर साहब बहाढुरकों तू नहीं पहचानता ? कसा बेवक़्फ़ है ! साहबकों सलाम नहीं करता ?”' देवक्‌मार्रासह-- हु-हु-हुजूर, माई-बाप, सलाम ! माफ कीजिए ।”' “माफ नहीं होटा । टुम नहीं जानटा, गाँव गाँवमें प्लेग, फैला हाय; टुमारा डरवाजा पर नाबडान है।” छड़ीसे धमकाते हुए “्रभी नाबडान साफ़ करो, साफ़ करना माँगटा ।”' “हुजूर, भ्रभी साफ करता हूँ”--देवक्माररसिहकी नींद तो न जाने कहाँ चली गई थी । वह घरमें फावड़ा लाने घुसे । साहब बहादुर झ्ौर भ्ररदली बाहर टहल रहे थे; शभ्रौर झ्रास-पासकी दीवारोंकी श्राड़में कितने ही लोगोंको हँसीका रोकना मुश्किल हो रहा था। देवकमारसिह बाहर शआ्ाए तो साहब बोल उठे--सौ रुपया जुर्माना । बहुट गंडा ।”' “हुजूर, ग़रीब शझ्रदमी हूँ, बालबच्चे मर जायेंगे । भ्रभी साफ़ कर देता हूँ। फिर गंदा नहीं रक्खेंगे। जुर्माना माफ कर दें । दोहाई हुजूरकी ! ”--देवकमारसिंह साहबका पैर पकड़ना चाहते थे । “हटो हटो, नहीं माफ होगा । पुलिसका नौकरी किया हांय, टुम छे रूपया पेन्सन पाटा हू; जुर्माना डेना होगा ।” “सरकार, ग़रीबपरवर, श्रब कसूर नहीं होगा । एक कसूर माफ ।”” “्रच्चा, एक बार छोड डेटा हाय । नाबडान शअ्रभी साफ करो ।” देवकूमारसिह फावड़ा लेकर नाबदानकी नांदकी शोर बढ़े । उसमें गंदा पानी भरा था। सोच रहे थे--क्या करें । इतने में 'साहब' बोले-- 1 (ि कर का 0 ) श्े कर ते प्‌ जि ी ही ारनिकसितसिवतदिसमिससमससमुस्‍मममस्पमममममर मं पपसससवसमिससरयस-नलकस्थदानयाडत री लावासटरपाए




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