जारज | Jaaraj
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
42.33 MB
कुल पष्ठ :
265
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मा
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_नमपपायपाणतककरम्वररहिगववरफाब्कपपकनपााा
न ननननपककपणपणवकगरस या हर रा
ज्ञारज
भी मानो इस समय सब-कुछ समक रहा था । सरल, श्रबोध देवर
के आँसू देख कर, गोविन्दी तड़प गई । झाँचल से उसके झाँसू पोंछ कर
गोविन्द ने पूछा--“ठुम क्यों रो रहे हो, लाला ?”
. शिवशंकर ने कोई उत्तर न दिया ।
“बोलो, लाला. ! ठुम कहे रो रहे हो ?””
“जिस लिए ठम रो रही हो !”
'“्सेरे माग्य में तो अब रोना ही बदा है !”
“क्यों, भौजी १”
“ऐसे ही । अच्छा, यह बताझओ लाला, यह सुग्गा कहाँ पाया है”.
'प्यह तो मेरा ही है ।” शिवशंकर उठ कर बैठ गया--“इसे मैंने
'ही पकड़ा था । बड़ा अच्छा सुग्गा है ! खूब बोलता है ।””
उछल कर, कोठरी से निकल कर शिवशंकर ने पिंजड़ा उठा लिया ।
“तर देखो, भौजी !””
“जड़ा सुन्दर है !” शिवशंकर के हाथ से पिंजड़ा लेकर गोविन्दी
-मुश्कराती हुई तोते को ध्यान से देखने लगी ।
“इसका नाम कया है, लाला १”
““गंगाराम । बोलो, गंगाराम !””
_ तुरन्त गंगाराम टार्यैं-टार्य करने लगे ।
_ “यह नहीं । कहो, सीता राम !”
'“शीता-अआम ! शीता आम !” तब देवर-भावज खिलखिला कर
रे
हँसने ठागे, और हँसी के उस प्रवाह में वेदना के श्राँस, घुल-मिल
«गये | की
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