द्वंद्वगीत | Dwandageet

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Dwandageet by राजेश्वर प्रसाद सिंह - Rajeshvar Prasad Singh

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about राजेश्वर प्रसाद सिंह - Rajeshvar Prasad Singh

Add Infomation AboutRajeshvar Prasad Singh

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
द्रन्द्रगीर ष ¢ ९४ भ क रती खराद की, रुके नहीं यह क्रम तेरा । अभी फूल मोती पर गढ़ दे, अभी वृत्त का दे घेरा। जीवन का यह दर्द मधुर है, तू न. व्यथे उपचार करे । किसी तरह ऊपा तक टिमटिम जलने दे दीपक मेरा | पुर चलने १६ स्या पृदक खद्योत, कौन सुख चमक - चमक दिप जने में! सोच रहा कसी उमंग है जलते - से परवाने में । हाँ, स्वाधीन सुखी है, लेकिन, आओ व्याधा के कीर, बता, केसा दै आनन्द जाल में ` तड़प - तड़प. रह जने में?




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now