जाटों के जौहर | Jaton Ke Johar

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Jaton Ke Johar by आचार्य गोपाल प्रसाद 'कौशिक' - Aacharya Gopal Prasad 'Kaushik'

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about आचार्य गोपाल प्रसाद 'कौशिक' - Aacharya Gopal Prasad 'Kaushik'

Add Infomation AboutAacharya Gopal PrasadKaushik'

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
(११ ) ह 15 (088 का वि. एण्ड 00 पक्षुंएफ 8026 गे सीडाफधातं छत, फटा 1059 ऐ 8्राशरण$ ए त18851005 ८8108 हुए. 06 फणफहा 0 ८ की 0४ फंड पिला; फह 687 गर्णधि0 06 ए पिलाए एल. 1658, जहा दि एट800687 85 आए 05 एी मैएए808260 1 9०0 18. मद एव शी उक्80, जर्यात्‌ इम जाटों के प्राचीन इतिहास के सम्बन्ध में बहुत कम या नदी ही जानते हैं, पहिले सातवीं शताच्दी में सिंध के जाट जादाण राज-इुल से शासित थे और ग्यारदवीं शताब्दी में पंजाब में फैल गये। अयात्‌ इस सबसे पहिले मुसलमान इतिहासकारों की डी से ही जाटों के विषय में ज्ञान प्राप्त करते हैं जिन्होंने लिखा कि सन १०९४ ३० में सिंध के जाटों ने महमूद की सेना को कई ठुकड़ियां काट रालीं जब कि वदद शुजरात में सोमनाथ की लूट के पश्चात्‌ रेगिस्तान में होकर गजनी को लौट रद था । इन अत्याचारों की सजा देने को मदूद ने सन १०२६ ई० में उन पर इमले किये। जाटों की मुख्य आवबादियों उस समय सिंध और सतलज नदी के बीच में थी । यद्द देखकर कि जाटों के प्रदेश में चड़ी-बड़ी नदियों का जाल पुरा हुआ था, महमूद ने मुन्ान पहुँच कर बहुत सी नौकायें बनवाई' और उनके सामने के हिस्से मे छः ठ: मेखें लगवाई' ताकि जाट जो इस प्रकार के युद्ध मे कुशल ये, उन पर न चढ़ सकें, प्रत्येक नौका में .सने एक समूद चाण-धारियों का बैठभया और मिट्टी के तेल में डुदोये अस्त बाण दिये जिससे वद्द जाटों के बेढ़ों को जला दें। नो मे अनसे




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now