३३ देवताओं का विचार | 33 Devataon Ke Vichaar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१४ तात्पयं इस प्रकार १ अधि २ इन्द्र ३े बृह- स्पाति ४ सविता ५ अखिनी ६ सोम ७ आप ८ मरुतः इन देवताओंसे भिन्न उक्त तेहत्तीस देव हैं अथवें कां. १०।७१३ ९६३ २७ में स्कंभ अथात्‌ जगदाघार परमात्माके अंदर ३३ देव हैं । ऐसा कहा है इसलिये स्कंभ देवसे उक्त ३३ देवता मिन्न है यह स्पष्ट सिद्ध है । इसीमंत्रके £ क-तम दाब्द्से क£ देवताका ग्रहण किया जाय तो यह भी एक मिन्नदेवता माननी पड़ती है । तथा कः का अर्थ प्रजा- पति है यदि इसी प्रनापति द्वारा ३३ देवताओंके ३३ स्थान बन गये हैं ऐसा माना गया तो इनसे प्रजापति देवता भी अलग माननी पड़ेगी । अर्थात्‌ ९ स्कंभ १० कर ११ प्रजापति इतने देव उक्त ३६ देवताओंसे मिन्न हैं ऐसा मानना पडता है। अंतिम दो देवेंकि विषयमें अमी तक पूर्ण निश्चय नहीं है तथापि शेष ९ देव मिन्न हैं इसमें कोई संदेहही नहीं है । अर्थात्‌ कुल ३३ ही देवताएं हैं ऐसी बात नहीं है। इनसे मिन्न उक्त अग्यादि देव हैं । और घूंडनेपर अधिक भी मिल सकते हैं। वेद भी ३३ देवताओंसे मिन्न कई अधिक देव हैं । इस प्रकार वेदका मंतव्य ३३ देवताओंकि विषयमें देख छिया | अब ब्राह्मण यंथेंमिं इन देवताओंके विषयमें जो उछेख आगयें हैं उनका विचार करेंगे । --




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