खूनी औरत का सात खून | Khooni Aurat Ka Saat Khoon

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१४ ............. खुनो जौरत का क्ों कं का आल मगर रेट ५ के बज पागल भर कि अल पिच की पीजी कल ./ न बज ० करके फिहें को ५ गज चौथा पारिच्छे सर्द कोठरो । नमस्यामों देवान ननु हत विधेस्तेपि सो 5 प्रतिनियत कर्मे कफफलनद । फलं रूमायत्त यदि फिगमरी लि ने विधिना नमस्तत्कर्मस्या विधिरपि न येक््य प्रमचति ॥ हरि बस इसी तरह की घातें मैं मन ही सन सोच रही थौर रोग्ही थी कितने है मे जेलर साहब से आकर सुक्तसे यों कडा -- बेटी _ दुछारी मुझे ऐसा ज्ञान पड़ता है कि तुम्हारे खंठे दिनगए सौर भले दिन अब जाया ही चाहते हैं । तुम पर जगदीश्चर बरी करुण दृष्टि पड़ी है भर तुम्हारा दुर्भाग्य सी भाग्य से रदस्टा चाहता हे मेरे इतना कहे का समतलध केचल यही है कि पक बडे जबद स्त हाथ ने तुम्दद अपने साये तले लेलिया है जिससे इस आाफत से तुम्हारा त्रहुन जल्द छुटकारा होजाय तो सोई अश््यय की बात नहीं | चात यह है कि भाई दयाल लि बहुत और बड़े जबद्स्त ज्ञासूम हैं और सरकार के यहां इनकी चालों का बड़ा है। तच जय लि यददी द्यालसिंद तुम्हें छुड़ाने के लिये उठ खड़े हुए हैं तो मैं निश्चय नद्द सकता हूँ कि तुम्हारा छुटकारा झरूर ही होजायगा । यदि इंश्चर ने. ऐसा किया तो में सचमुच बहुत हो प्रसन्न होऊंगा । क्योंकि मैं सी चालकों चाला हूं भौर यह बात जी से चाहता हूँ कि किसी तरद तुम इस बला से सच जाअर। मैं चुपचाप जेखर साइव कं बातें खुनती रही इतभे में फिर वे यों कहने छूगे -- देखो साई द्याठसिंद की बढ़ी चढी ताकत गे एलन ही सम का पक नया तमाशा तुम देख | सुझे असी मजिच्टर साइव फा एफ तुक्मनामा मिला है जिसमें यों लिखा है कि दुलारी काछठफकोठरी. न




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