आरोग्यादार्श | Aarogyaadarsh

Aarogyaadarsh by इ. जे. लज़ारस - E. J. Lazarus

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१५) जलाइ जाती हैं उनमें फेंक दी जाती है । प्रायः ऐसा भी हाता है कि नदियां में कूड़ा करकट फेंका जाता है । इसी कारण बढ़ी २ नदियां का भी जल थिगड़ जाता है परन्तु बहुधा देखने में आया है कि जब नदी बहुत छाटी | हाती है और किसी ओर बहाव नहीं होता तय और | अधिक हानि होती है । बहता पानी धीरे २ वायु से शुद्ध हा जाता है । ध प्रत्येक उपाथ करना चाहिये कि जिसमें लोग अपने | आसपास की नदियां का जल स्वच्छ रखें ॥ ं (३) तालाघ । १५. तालावों के द्युरू रखने में बड़ी असावधानी की | जाती है यद्यपि उनका जल बंधे रहने के कारण द्यीभ्र थिगड़ | जाता है । लाग तालावां में नहाते हैं; दूतुअन कुल्ला करते और थूकते हैं ; कपड़े घाते और जूठे बतेन मांजले हैं; किनार पर सैलाकर के जल लेते हैं; चा पाये और सुअर उनमें छाटले | रहते हैं और कभी पाधे भी शिंगोाने के लिये उनमें डाल दिये जाते हैं । तथापि उन्हीं तालाबों का जल पीने और भाजन | बनाने के काम में लाया जाता है ॥ जिन तालाषां का जल गमी की ऋतु में खूस्ख जाता, या बहुत घट जाता है वह अत्यन्त रागक्ारी होता है । यदि | हो सके ता बस्सी के पास के छाटे २ तालाव, जिनका लाग | छाड़ देते हैं, पाट दिये जायें और कैसी अच्छी बात हे कि. गांव के सब लाग मिलकर पीने के जल के लिये एक बढ़ा गहिरा तालाव खादवावें । मछलियां और हरे पाथां खे ताला-| यां का उपकार होता है परन्तु दक्ष की पत्तियां और सड़े| पाधां से हानि हाती है । तालावां के सबीप कूड़ा न रहना | चाहिये नहीं ला पानी वरखने से वह बहकर उनमें चला-| जायगा यथा धरती में समाकर उनमें जा मिलेगा ॥




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