आरोग्यादार्श | Aarogyaadarsh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.86 MB
कुल पष्ठ :
66
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१५)
जलाइ जाती हैं उनमें फेंक दी जाती है । प्रायः ऐसा भी
हाता है कि नदियां में कूड़ा करकट फेंका जाता है ।
इसी कारण बढ़ी २ नदियां का भी जल थिगड़ जाता
है परन्तु बहुधा देखने में आया है कि जब नदी बहुत छाटी |
हाती है और किसी ओर बहाव नहीं होता तय और |
अधिक हानि होती है । बहता पानी धीरे २ वायु से शुद्ध
हा जाता है । ध
प्रत्येक उपाथ करना चाहिये कि जिसमें लोग अपने |
आसपास की नदियां का जल स्वच्छ रखें ॥ ं
(३) तालाघ ।
१५. तालावों के द्युरू रखने में बड़ी असावधानी की |
जाती है यद्यपि उनका जल बंधे रहने के कारण द्यीभ्र थिगड़ |
जाता है । लाग तालावां में नहाते हैं; दूतुअन कुल्ला करते
और थूकते हैं ; कपड़े घाते और जूठे बतेन मांजले हैं; किनार
पर सैलाकर के जल लेते हैं; चा पाये और सुअर उनमें छाटले |
रहते हैं और कभी पाधे भी शिंगोाने के लिये उनमें डाल दिये
जाते हैं । तथापि उन्हीं तालाबों का जल पीने और भाजन |
बनाने के काम में लाया जाता है ॥
जिन तालाषां का जल गमी की ऋतु में खूस्ख जाता,
या बहुत घट जाता है वह अत्यन्त रागक्ारी होता है । यदि |
हो सके ता बस्सी के पास के छाटे २ तालाव, जिनका लाग |
छाड़ देते हैं, पाट दिये जायें और कैसी अच्छी बात हे कि.
गांव के सब लाग मिलकर पीने के जल के लिये एक बढ़ा
गहिरा तालाव खादवावें । मछलियां और हरे पाथां खे ताला-|
यां का उपकार होता है परन्तु दक्ष की पत्तियां और सड़े|
पाधां से हानि हाती है । तालावां के सबीप कूड़ा न रहना |
चाहिये नहीं ला पानी वरखने से वह बहकर उनमें चला-|
जायगा यथा धरती में समाकर उनमें जा मिलेगा ॥
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