भोजपुरी लोरिकी | Bhojpuri Loriki

Bhojpuri Loriki by श्याम मनोहर पाण्डेय - Shyam Manohar Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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16 उन्होंने बेवल दो बार टू न से यात्रा की थी । एक बार अपने गाँव के पास के स्टेशन बक्सर बिहार में है से वह जमानिया गये थे जो पास ही में गाजीपुर जिले में है । दूसरी बार उन्होंने मेरे साथ आगरा तक की यात्रा की थी । उन दिनों मैं लोक- महाकाव्यों के संग्रह में लगा हुआ था । अपने गुरु माता प्रसाद गृप्त जो के० एम० इंस्टीच्यूट के निदेशक थे के भआग्रहू पर मैंने आगरा में ही अपना मुख्य केन्द्र बनाया था तथा लोक-साहिप्य के सुप्रसिद्ध विद्वानु डॉ० सश्येन्द्र जी की कोठी में 54 सूर्य नगर में रहता था । मुना है अब घधिसी जूते वाले ने उस कोठी को हड़प लिया है । सीन।थ चौधरों अकेले टू न से यात्रा करने में घबराते थे अतः मैंने निहालपुर रतसंड के अपने सम्बन्धी केशव तिवारी को अपने साथ ले लिया था । केशव तिवारी के सहयोग से ही मुझे सीवनाथ चौधरी का पाठ संग्रहीत करने का अवसर मिला । सीवनाथ चोधरी के भाई की ससुराल रतसंड के पास पंड़वार में थी अतः वह वहाँ जाया करते थे । मरे सम्बन्धी श्री केशव तिवारी से उनको भेंट वहीं हुई थी । दोनों अच्छे-खासे मित्र बन गये थे । सीनाथ चौधरी अहीरो में डड़होर कुरी के अहोर थे । बलिया मे ग्वाल और पास के बिहार में कृष्नौत गोत के अहोर काफी संख्या में हैं । सभी अहीर लौरिकी को प्रश्नय देते थे । आधुनिकता के प्रभाव और अहीर जाति में सम्पन्नता और उत्तरोत्तर शिक्षा का विकास हो जाने से लोरिकी आदि पर उनकी आस्था नहीं है । रुचि बदल जाने से अब लोक-महाकाव्यों को प्रश्नय नहीं मिल पाता । अतः लोक महाकाव्य अब मुतप्राय है । गायक के मुख्य गुरु का नाम ठाकुर दयाल था जो भरौलो के ही अह्ीर थे । सीनाथ के पिता गायक नहीं थे । बचपन में गायक अपने ननिहाल में आकर रहा करते थे जो बलिया जिले के द्वाबा में था । वहां भी लोरिकी और लोरिकायन गायक सुना करता था । पूर्वी उत्तर प्रदेश के अहीरों में लोरिकी विरहा आदि का प्रचार हमशा रहा है । सीनाथ चौधरी के कोई पृत्र नही था । सभी कन्याएँ थी । मेरे लिए 1065 में जब उन्होंने लोरिकी गायी तो सारी कन्याओं का विवाह हो का था । उनके छोटे भाई गांव में ही रहकर खतीबारी करते थे । उनके पुत्र है । सोवनाथ चौधरो का अद्रीर परिवार अपने क्षेत्र में काफी सम्मानित था । सोवनाथ चौधरी के लोरिकी गाने से उनके समाज में उनकी प्रतिष्ठा काफो बढ़ गयी थी । आस-पास के अहीर उनसे अपनी और जातीय समस्याओं के बारे में राय लेने आते थे । मृत्यु के दो वर्ष पूर्व मेरी सीबनाथ चौधरी से भेंट हुई तो वे इस बात से बहुत चिन्तित थे कि उनके गांव वे. पास ईसाई मिश्री पैसा दे देकर चमार। को




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