गो ज्ञान कोश वैदिक विभाग खंड 1 | Go-gyan-kosh Vaidik Vibhag Pratham Khand

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : गो ज्ञान कोश वैदिक विभाग खंड 1  - Go-gyan-kosh Vaidik Vibhag Pratham Khand

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्रीपाद दामोदर सातवळेकर - Shripad Damodar Satwalekar

Add Infomation AboutShripad Damodar Satwalekar

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
(१६) किसीका इस घिपयमें मतभेद नहीं दो सकता । '* शुप्‌ *” 'घाहु सरक्षण करनेके लयेमें संरकतमें प्रयुक्त होता है भोर उसके रुप पूर्वोकत नामघातुझे समान “' गोपायति ” ही दोते हैं । गांके सरक्षणका पिलक्षण प्रभाव जैसा सबसाधारण पर हुआ इस दाब्दद्वारा दिखता है, जिसका! धातुके बनने और उसके रूप बनने पर भी असर पढे, ऐसा कोई शन्य घातु या दाब्ट संस्कृतमें या चेदमे भी नददीं है। एक हो यह प्रमोग यदि सूदम विचारकी ाटिसे देखा ज्ञाय लो स्पष्ट सिद्ध कर देगा कि गौजोंका संरक्षण, पालन भौर संवर्धन शायोंमिं और वैदिक धर्ममें एक विशेष मदर्वकी बात है, कि जिसपर इंकाददी नहीं हो सकती | बेदने इस दाव्दप्रयोग द्वारा ही सिद्ध कर दिया है कि * गौ 'नवध्य है” भौर उसका पाठन हो निर्मिवाद रीतिसे द्ोना 'घाहिये । वेदमें इसके प्रयोग देखिये-- ये गोपायान्ति सूर्यम्‌। (यर. १०1१णपोण ) “ जो सूर्यकी रक्षा करते हैं, ** थद्द इसका तात्पर्य है, परंतु इसका भाय यदद है कि * गोपाठनके कर्मके समान यम सूयंके साथ करते हैं । ” कर्थाद्‌ सूर्यकी पालना करते हैं । गोपाठनके विपयमें कौर इससे भधिक कदना दी. क्‍या '्वादिये । चैदिक धर्मेमें सो इस प्रकारके पाव्दप्रयोगोंलि झंतिम भाशा ' दी कददी जाती है, जिसका उलटपुरूट होना भसंभव है | इस नामघातु शौर घातुके प्रयोग चेदसें बहुत हैं, उन - सभके उदाइरण यहां दिखानेकी आावश्यकता नहीं, परंतु इनकी डस्पत्ति यददों देखनेयोरय दे-- गौ सन. गाय गोप (गो-प )> गापका पाठक *. गोपियू * गोपाठके समान भाचरण करना भर्यात्‌ रक्षा करना ”.. गोपायाति न रक्षा करता है । कर ,शापायनं से सरधरण रुप ( शु+पु ). न ( घातु ) रक्षा करना देलिये भौर डिचारिये कि यदि सोपाठनका सइ्य मिर संददद वैदिक घमेमें म होता सो ऐसे घयोग देदमें कैसे बाचाति है किए इस सोपाएतका सहरव सिय होनेपर क गा-शान-काश किसप्प्रकार कद्दा जा सरता है कि वैदिक कालमें गोमांस भक्षणर्ी प्रथा थी । यदि गोमांसभक्षणरी प्रथा होती वो गोंरक्षाका इतना मददद्च केसे दुर्भाया जाता ? (२१) विवाह गोमांस | विवाइ-संस्कारमें गोमांल खाया जाता था ऐसा सूरोषि- यन पंडित म० मैकडोनेठ भोर कीथने अपने बैद्क हन्ठेगस में दृ० 1४५ पर लिखा ह--” प6 गाए 888 एटाटघ्ा005 फ98 0000109 060 9] (06 नकं0ड 0६ डा, लेड्घा1फ हिण 0 ” विवाइसंस्कार गाप बैठों छा वघ शन्नके खियेही [किया जाता था । इस विपयका प्रमाण उन्होंने जो दिया है उसका विद्ार अब करना चादिये-- सूयोया चहतुः भागात्‌ सचिता पमवासुजर्त आधघाखु दन्यस्ते गाचोर्जुन्योः पयुंद्यत ॥ ( क्न १० 1 दण 1 हश) यह मंत्र एक क्ार्डकाशिकि वर्णनमें आागया है इसका पूर्पापर सेवंध देखनेसे मंत्रका के रुवयं खुछ जायंगा। इसलिये इसके परवके झछ मंत्र देखिये-+ सत्येनोत्तमिता भ्रूमिः सूर्यण त्त मिता घोः। मतेनादित्यास्ति्ठन्ति दिवि सोमो अधि।श्रितर है चित्तिरा उपब्दण चशुरा मभ्यन्जनम्‌ । चौभूमिः कोश आालीघदयात्वूर्या पतिम्‌ ॥ ७ 0 स्तोमा मासन्प्रातिघयः कुरीरं छंच्द मोपशः । सुर्योया अश्विना घरा5झिरासीत्पुरोग घर ॥ ८४ ॥ सोमी घधूयुरमवदश्विनास्तामुभा घरा। पं रपत्तद रत फाराप्पप रर्दिरुसदद्प्त, ९१४ मनो अस्या अन आसीदू चोरासीदुत च्छादिः डुफ्ाचनइयादावास्तां यदयात्सूया सुददम ए६०॥ शऋफ्सामाम्याममिदिती गावो ते सामन।विर्त! शोर्ष ते चफ़े आास्तां दिवि पर्थाध्यराचर ॥६११ झुची ते चफ्रे यात्या ब्यानो मश्न आइतर 1 अत! सनस्मयं सूर्या55सेदरमयती पतिम्‌ 0१९॥ सूर्याया घदतुः प्रागारतवि तायमपासरजत्‌। अघासु दन्यन्ते गायोध्सुम्योः पर्युहाते ॥ १६ 1 यदयातें इुमस्पती यरेप सूर्यामुप ! फियक घर पामास रिकय देप्ट्राय तस्ययु, ॥ ५६००




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now