श्रीमद भगवद गीता | Shrimad Bhagwat Geeta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ वेतेपर भी उसको राज्याधिकार मिला जेसा कि रजोगुणी मजुष्यको मिलना योग्य है । परंतु भागी रोगसे मरता है सार उस मोगीके कषेत्रसें भाग म्रवूत्तिसे ही-परतु घमसे मर्यादित होकर-अन्य शीजोंसे पाँच पुत्र उत्पन्न होते हैं | धर्मदत्ति बठवत्ति वीरघुत्तिवाले बीजोंसे इन ही तीन प्रदृति- योंकि ऋमदा धर्म भीम भोर भर्जुन ये तीन संतान एक क्षेत्रमें होते हैं। दूसरे क्षेत्रमें चिकित्सा ज्ञान धुत्ती नार देववुत्तिवाले बीजसे क्रमदा। नकुछ भार सइदेव ये दो संतान होते हैं। भर्धात्‌ रजोगुणसे घर्म बछ वीर चिकि - हा ज्ञान भार देवमाव ये पांच प्रचासयां घ्रका।दात दाग भार इस कारण परमेश्वर इनका सहायक हुआ । रजोगुणसे य दि घर्मकी भोर घ्रचुत्ति होगइं तो उसका अन्तमें भला होगा ही । शुद्ध सत्वगुणी विदुर जेसा अपने शंदुर ही संतुष्ट भार्मन्येवात्मना तु । भ० गी० २५५ है रद्देगा इस कारण उससे जगत्‌में धर्म क्मकी प्रव॒त्ति नहीं दोलकती । इस कार्य के लिये घर्मेमें प्रवत्त रजोगुग चाहिये जो पूर्वाक्त रूपकमें पांडु शुद्ध कछूकर हित द्वारा बताया है। इससे पांच श्रेष्ठ चित्तबुत्तियां धर्म बछ निर्मयता वीरमाव ज्ञान भॉर देव मक्ति येदी उत्पन्न दोती हैं। चघास्तव में मजुष्यका सब कुछ जीवन इन्दींके अघीन रहना चाहिये किंचा सब जगतूपर इन चत्तियोंका दी राज्य होना चाहिये परंतु ऐसा होना कठिन है। इन वृत्तियोंसें भी धर्मवृत्तिक अधीन दी बर शोर बीर ये दोनों भाव होने चाहिये तथा ज्ञान और भक्ति सी भाव घमके अधीन ही चाहिये । यां _ भर बऊ भीम घर्मकी काज्ञा न मानेगा वीर अजुन 9 .. मनमाना बर्ताव करेगा ज्ञान न-कुछ धघर्मका रुख छोड़ देंगा और भक्तिभाव सद-देव 1 घर्मानुकूक इंश्वर . भजनमें कंगनेकी अपेक्षा भूत्तपिशाचराक्षसोंकी शसन्ता संपादन करनेमें छगेंगा तो ये चारों-बछ वीर ज्ञान भर कक कक न एसा न. होगा श्रीमज्धगवद्रीता-पुरुषाथवो घिनी भच्याय है तबसे ही दंभ दए कषसि मान क्रोध पासष्य लोभ सा घोर राक्षसी चूतसियाँ उनपर हमला करती हैं झोर उ सद्वत्तियों को दबानेका थत्न करती हैं। तमोगुणी उतरा की संततिसे इन्हीं आसुरवत्तियोंकों बताया है। घमंप्रचू तियोंको ये भासुरी अवत्तियाँ छुटपनसे ही दबार्त बताने के लिये पांडवॉको बालपनते कष्ट प्राप्त होनेका बणन अन्तत कपटसे आसुरी बत्तियां घमचुत्तियोंकें राज्य घुसठी हैं वहाँ अपना भजिनार जमा देती हैं. भोर घम चत्तिको भन्त करणडे राज्यमें आने नहीं दतीं। घर्मवुत्ति ने।र उसके अनुयायी सद्धावोंको परमेश्वरके भाश्रयसे उक्त कारण दी युद्ध करना पडता है भोर जिन्दोंने उनकों बढाया उन्दींकों मारना पडता है। ज्ञान देनेवाक यहाँ न्ञानेन्व्रियाँ मन चित्त भइंकार आदि होते हैं इनसे ज्ञान प्राप्त किया यह सत्य है चथापि जब येद़ी असद्वुत्तिके सद्दायक होने कगते हैं तब इनका दी दमन शोर संग्रम करना पड़ता है। यहाँ भददंकार भीष्मपितामद्द है जो भन्योंके समान एक दो दिनोंके प्रयतनसे नाशको प्राप्त नहीं होता १८ दिनोंक युद्धमें इसका दमन करनेके लिये ३० दिन लगे हैं तब भी यह मरा नहीं यह भन्तमें अपनी इच्छासे दी शांत हुआ । क्योंकि यदद समाधि सिद्ध होने तक रहता है पश्चात यह स्वयं शत होता है। सन ड्लोणाचाये है यदद सबको लिखाता है परन्तु इसको सी शत करनां पड़ता है । इसी प्रकार भन्यान्य कोरव वीरॉकी भवस्था हैं | कारव सेकडों हैं. न्ञाशापाशशतबद्धा । भ० गी० १४ १९ क्योंकि आशा वासना काम क्रोधादिके सैकड़ों प्रभेद इस -हदयमें फेकति हैं। इस प्रकार यह कौरव संसार मनुष्यके हृद्यमें होता हे । अध्यात्मभूमिमें यद्दी भारतीय युद्ध मानवी इृदयकी भूमिकापर होता दे। इस युदमें दम दप असिमान क्रोध भादि विकार बड़े प्रयरन वे दांत किये जाते हैं भर परमे- शवरकी कृपासे घमे प्रचातियोंका राज्य दोता दे भर इन्दींको गा भूमि बोर स्वगंका राश्य मिछता दे। इररुक सलबुष्यके _ भन्तःकरणमें यद सत्‌ आर नसत्पवृत्तियोंका युद्ध होता है.




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