हिंदी के सूफी प्रेमाख्यान | Hindi Ke Sufhi Premakhyan

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Hindi Ke Sufhi Premakhyan by परशुराम चतुर्वेदी - Parashuram Chaturvedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१७ ) . है जिनका रूप आधुनिक लग सकता है । यदि इसकी तुलना इसके सवा सौ वर्ष .. पहले, इसके विषय को ही लेकर लिखें गए दोख निसार कवि के प्रेसाख्यान “यूसुफ जुलेखा' के साथ की जाय तो उस दा में भी, कुछ न कुछ वैसा अन्तर ।, सिद्ध किया जा सकता है, कितु केवल उसके ही कारण, इसकी परंपरागत 'रचना- झोली में लक्षित होने वाले किसी स्पष्ट विकास का भी बोध नहीं हो पाता, प्रत्युत ऐसा लगता है कि अभी तक वही पुराना टकसाल काम देता चला जा रहा है जिसकी स्थापना इसके लगभग ६ सौ वर्ष पूर्व हुई होगी । पता नहीं “प्रेमदर्पण' के इधर भी कोई सूफी प्रेसाख्यान लिखा गया है वा .. नहीं । यदि किसी ऐसी रचना का निर्माण हुआ है तो उसका रूप कहाँ तक नवीन है अथवा किस मात्रा तक उसमें पायें जाने वाले किसी विकास-क्रम का अनसात किया जा सकता है । इसी प्रकार हमारे पास ऐसा कोई दूसरा साधन भी नहीं जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि ऐसी रचनाओं का भविष्य क्या हो सकता है। उपलब्ध सासग्री पर विचार करके इस विषय में, केवल इतना ही मत प्रकट किया जा सकता है जो इस साहित्य के मूल्यांकन से सम्बद्ध है तथा जिसके ' अंतर्गत इसके भावी सानव समाज के लिए किसी प्रकार उपयोगी सिद्ध होने वा न होने की बात भी आ जाती है । हिंदी भाषा सें इसका निर्माण उस समय होने लगा था जब इसमें एक ओर जहाँ केवल फुटकल रचनाएँ प्रस्तुत की जा रही थीं; वहाँ दुसरो ओर यदि कोई प्रबंध-काव्य लिखा भी जा रहा था तो वह भी संभवत: या तो किसी पौराणिक ग्रन्थ का अनुवाद जेसा रहा करता था अथवा उन अपभ् शा रचनाओं का अनुकरण मात्र था जिन्हें 'चरिउ' वा “रासो' जैसे के अंतर्गत गिनने की परंपरा चली आ रही है। इनमें से 'चरिउ' काव्यों में उनके नायकों के जोवन की घटनाएं विस्तार के साथ दी जाती थीं । उनके चवंश परिचय; - चात्यावस्था, तीर्थें-भ्रसण, दास्त्राम्यास, शासनकार्य, सम्मान एवं देहात जैसे विषयों का समावेदा करके, ग्रम्थ का उपसंहार दे दिया जाता था । कितु रासो कहे जाने वाले ऐसे ग्रत्थो के अंतर्गत अधिकतर उन्हीं वातो की चर्चा की जाती थी जिनका उनके जीवन में विशेष महत्व था । इसके सिवाय, इन दोनों प्रकार की 'रचनाओ के अंग-विभाजन में भी कुछ अस्तर जान पड़ता था, क्योंकि प्रथम




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