मूर्त्तिपूजामण्डन | Murtipoojamandan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.22 MB
कुल पष्ठ :
236
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(३)
चिपय होनेसे चिदित ही हैं तथापि उनकी तील प्रत्यक्ष प्रमा-
जणका विपय नहीं भर न किसी प्रमाण की सति
है इसलिये गन्नादिकों तीलने के लिये जो पंसेरी आदि घाट
कहिपत किये जाते हैं थे भी प्रतिमा हैं. यदि विशेष विचारसे
देखा जाय तो प्रतिमासे रिक्त कुछ न मिलेगा, और यदि इन
तौल आदि के लिये प्रतिमा न चनाई जावें तो घड़ी दिक्कत
जापड़े ।
इसी प्रकार अकारादि स्वर और ककारादि व्यज्षन श-
ब्दात्मक चाणीके विव्त्त हैं और शब्दात्सक होने से प्रत्यक्ष
आकृति रदित हैं परन्तु इन को याद रखने के लिये तथा स+
मकते के उिये चुद्धिमानों ने शब्दाटमक स्वर व्यज्ञनादिं को
एक २ करिपत मूत्ति रेखाओं द्वारा नियत करली है और.
जहां कहीं इन कष्ित रेखाओं से नियत किये हुए भाकार
को देखते हैं चहां ही जिन स्वर वा व्यक्षनकी थे
आछति हैं उसी स्वर था व्यज्षन का उच्चारण करते हैं इसी
प्रकार शब्दात्सक भोश्म,शब्दकी कठ्पित सूर्ति 'आ' है ।
भौर लोजिये काल चिमु है एक है भखणड है पर उस
के भी व्यवहार के दिये खण्ड करने पड़े चर्ष ऋतु मास पश्च
दिन रात्रि प्रहर घटो मुह निमेष आदि कितने ही खरुड
हा
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