सांख्य-दर्शन | Sankhya Darshan
श्रेणी : दार्शनिक / Philosophical
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.22 MB
कुल पष्ठ :
192
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(४)
' थुगपत्नायसानयोन काय्यकारणभाव! ॥ रेद ॥
झर्थ--जो पदार्थ एक साथ उत्पन्न होते हैं उनमें काये-कारण
भाव नहीं हो सकता ; स्योंकि ऐसा कोई हृष्टांत लोक मैं नहीं है,
जिसमें कारयनकारण की उत्पत्ति एक साथ ही हो । यदि क्षणिक-
बादी यद कहें कि मृत्तिका और घटक्रम से हैं, पद़िशे मृत्तिका
कारण फिर घट कार्य उत्पन्न हो गया तो इसमें भी दोप है ।
पूर्वापाये उत्तरायोगात्॥ ३६ ॥
झर्थ-इस पत्त सें यह दोष होगा कि पूर्व क्षण में सत्तिका
उत्पन्न हुई, दूसरे क्षण में नष्ट हुई, तब पीछे उससे काय्यरूप घट
क्योंकर उत्पन्न होस्कता है? इसलिये जबतक उपादान कारण न
माना जाय तबतक काय्ये की उत्पत्ति नहीं दोसकती । अतएव
काय्ये-कारण भाव क्षणशिकवादियों के मत से सिद्ध नहीं दो सकता |
उ०--तड्डावे त्ृदयोगादुभयव्यभिचारादपि
नया ही
थे--कारण की विद्यमानता से और काय्य के साथ उसका
सम्बन्ध न सानने से दोनों दशाओं में व्यभिचार दोप होने
से कारण-काय्य का सम्बन्ध नद्दीं रहता। जब कार्य बनता था
क्तब तो कारण नहीं था और कारण हुआ तब कार्य्य बनाने का
विचार नहीं; अतएव क्षशिकवादियों के सत में काय्ये-कारण का
सस्वन्घ किसी प्रकार दो नहीं सकता ।
श्र०-जिस प्रकार घट का निमित्त कारण कुलाल पहिले से
ही साना जाता है. यदि इसी भाँति उपादान कारण भी साना जावे
तो क्या शक्ा है ?
उ०--पूर्वभावमात्रे न नियम ॥ ४१ ॥
User Reviews
No Reviews | Add Yours...