सांख्य-दर्शन | Sankhya Darshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(४) ' थुगपत्नायसानयोन काय्यकारणभाव! ॥ रेद ॥ झर्थ--जो पदार्थ एक साथ उत्पन्न होते हैं उनमें काये-कारण भाव नहीं हो सकता ; स्योंकि ऐसा कोई हृष्टांत लोक मैं नहीं है, जिसमें कारयनकारण की उत्पत्ति एक साथ ही हो । यदि क्षणिक- बादी यद कहें कि मृत्तिका और घटक्रम से हैं, पद़िशे मृत्तिका कारण फिर घट कार्य उत्पन्न हो गया तो इसमें भी दोप है । पूर्वापाये उत्तरायोगात्‌॥ ३६ ॥ झर्थ-इस पत्त सें यह दोष होगा कि पूर्व क्षण में सत्तिका उत्पन्न हुई, दूसरे क्षण में नष्ट हुई, तब पीछे उससे काय्यरूप घट क्योंकर उत्पन्न होस्कता है? इसलिये जबतक उपादान कारण न माना जाय तबतक काय्ये की उत्पत्ति नहीं दोसकती । अतएव काय्ये-कारण भाव क्षणशिकवादियों के मत से सिद्ध नहीं दो सकता | उ०--तड्डावे त्ृदयोगादुभयव्यभिचारादपि नया ही थे--कारण की विद्यमानता से और काय्य के साथ उसका सम्बन्ध न सानने से दोनों दशाओं में व्यभिचार दोप होने से कारण-काय्य का सम्बन्ध नद्दीं रहता। जब कार्य बनता था क्तब तो कारण नहीं था और कारण हुआ तब कार्य्य बनाने का विचार नहीं; अतएव क्षशिकवादियों के सत में काय्ये-कारण का सस्वन्घ किसी प्रकार दो नहीं सकता । श्र०-जिस प्रकार घट का निमित्त कारण कुलाल पहिले से ही साना जाता है. यदि इसी भाँति उपादान कारण भी साना जावे तो क्या शक्ा है ? उ०--पूर्वभावमात्रे न नियम ॥ ४१ ॥




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