हिंदी सुभाषित | Hindi Subhashit

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Hindi Subhashit by नारायणप्रसाद 'बेताब' - Narayan Prasad Betabपं. रामरक्खामल - Pt. Ramrakkhamal

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पं. रामरक्खामल - Pt. Ramrakkhamal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४ अनन्य प्र म जिन नेननमें पी बसे आन बसे क्यों आन अबाबील घर करत है सूना देखि मकान प्रीतम छवि नेनन बसी पर छवि कहां समाय भरी सराय रहीम लखि आप पणथिक फिरज।य सरवरके खग एकसे बाढृत प्रीत न घीम पे मरालको मानसर एके ठौर. रहीम अन्याय दंड अवशुश करता ओरही. देत ओरको मार जो पहुंचे नहि रुद्र पे जारत विरहिन मार श्मौर करे अपराध कुइ ओर पाव फल भोग अति विचित्र सगवन्त गति को जग जाने जोग अनुचित संतोष छात्र छत्र--धर जो कहीं कर बेठे सन्तोष बढ़े नहीं दिन दिन घटे विद्याथनका कोष ऋअपधिय सत्य हितहुकी कहिये न तिहि जो नर हाय अवोध ज्यों नकटेको अआरसी होत दिखाये क्रोध वोष भरी न उचारिये यदपि यथारथ बात कहै अन्ध कों आंधरो मान बुरी सतरात




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