सम्पूर्ण संस्कृत शिक्षा | Sampurn Sanskrit Siksha

Sampurn Sanskrit Siksha by श्री सन्तराम - Shri Santram

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about पं संतराम - Pt. Santram

Add Infomation AboutPt. Santram

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
४ नीचे लिखे बर्णी के दो-दो रुप पाए जाते द--थ मौर अ भा और झ ण घर ण क्ञ झीर कै ल्ौर घ्र ज्ञ र सो जय दो या पधिक व्यब्ज्नों फे थीच स्वर नहीं रहते तब उनको सयुक्त व्यजन कहते हैं. जैसे--कय घ्त मन छादि जब किसी व्यज्न का संयोग उसी व्यजन के साथ होता है? त्तत वह सयोग द्विर कहलादा है जेसे-न हल त छादि । जिस क्रम से सयुक्त व्यजनों का उच्चारण होता है उसी क्रम से वे लिखे मी जाते ईूं जैसे --सन्त श्रह्म सत्कार छशक्त व्यजन दो प्रकार से लिखे जाते हैं- ४ सडी पाई समेत ९ निना सदी पाई के । ड छल ट ठ ठ दा द ७ द को घोड़ कर शेष व्यंजन सडी पाई समेत लिखे जाते है। सब वर्ण के सिर पर एक छाडी रेस्या -- रहती है किन्तु घ भा और म में थोडी सी तोड दी जाती है जैसे - घ म ़ मे । . पाई थाले पूरे लिखित व्यंजनों की पाई सयुक्त होने पर गिर जाती है. लैसे--पतलनप्ल तयनत्य तुतेंसयनस्य _. ड़ छः ट ठ रु ढ द+र हु ये नौ ब्यजन सयोग के शादि मे होने पर पूरे लिखे जाते हैं. घर उनके झन्त का सदर पूरे के व्यजन के नीचे बिना सिरे के लिया जाता है जैसे -- अट्ठू न्रह्ठ मद्रि मादि । कई संयुक्त व्यंजन दो प्रकार से लिखे जाते हैं जैसे --कूत फूलफ्क पर । लूकेचूलल्ल ल्ञ । कूपजनक्ल फल । शूतचनरव इंच । यदि र? के पीछे कोई व्यजन हो तो र उस व्यज्न फे ऊपर यह रूप धारण कर लेता दै जिसे रेफ्‌ कहते है जैसे --कणे द




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now