प्रथम हिंदी - साहित्य - सम्मेलन | Pratham Hindi Sahitya Sammelan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(५) विद्या श्रौर मादमाषा का महत्त्व | [ पं० श्वामविद्वारी 'औौर दूं ० शुकदेवविद्यारी मिश्र रचित 1 ] प्रिय भारत में चिद्या का जैसा गुर अभाव पाया जाता । चदद किसी दूसरे सभ्य देस में महीं आज दिन द्रसाता 0 बस इसी प्रबल दादन अभाव से फूटे भारत भाग ग अथ् इसके परम समुज्ज्वल जस में लगे मसयानक दाग ॥ 0 सब की, सब भूले की, सब हर अद्द ईश्वर सम्बन्धी भी शान करने हारी ॥ है विद्या मातु पिता सी पाठक तिय सी अति सुखदानि। चलाता खो सदा सदायक भेमी मीत सरिस गुनल्ानि है २॥ उत्तम सुतत सम अति चूद्ध बैस में चिद्या पाठन करती है । सत गुद् सी सिच्छा दे मनुष्य की मीच बुद्धि नित हदरकी है 1 'पकाकी जन का भी समाज का देती है आनन्द । कलियुग में भी सतयुग का देती साख सोन स्वच्छन्द है दे ॥ चिचावछ से नर घालमीकि की अब तक दातै' सुनते हैं । हपायन, चेदुष्यास, फृप्ण, की सुन्दर सिच्छा गुनते हैं पर कर दिया कपेठ मे पर जान शान परकाश 1 विधा चल से अध तलक चियागी उससे छर्ें सुपास २ ४॥ सामाजिक उन्नति चार्य्यगनां की विद्या चल से जग जाने । - चैदिक खुकाछ का सुख अब तक चेद पाठ से अनुमाने ॥ पुनि परदेशों में भी राजा सम रद मदन लिदान 1. चिचा सम दै नदि' तीनि छाक में छा रतन मददान ॥५॥ सत में केवल ग्यारदद बरतामा भी करना जानें । पुनि अयुत जनें में केवठ दस नर कछ़िज में पढ़ सुख माने ॥ है मारत विद्या की कुंदुसा यदद जब तक अति दुखरास । तथ सक उन्नति की किसी भांति भी क्या हा सक्तो आस ॥ ६४ घनधघान कहें कया कहों नैकरी करनी है मेरे सुत के । फिर व्यर्थ परिधम कर उसके पया करना है चिद्यायुत हे ॥ उत निरधन जन सब घनामाव से सुत का विधादान । करने में हैं न समये हाय दम हे क्यों कर विद्वान ॥ ७1 अवला करके विदान दर्म क्या कुछ इस्पीच दिखानी है । धाढे में उन्हें नचाने की इम ने न प्रतिज्ञा ठानी है १ लिखवा कर उनसे प्रेम पत्र कर के झाचरन तबाद 1 इसके है. नहीं अमीए्ट कार्टदिप की खुटवानी राद ॥ ८ ॥




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