प्रथम हिंदी - साहित्य - सम्मेलन | Pratham Hindi Sahitya Sammelan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.81 MB
कुल पष्ठ :
160
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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विद्या श्रौर मादमाषा का महत्त्व |
[ पं० श्वामविद्वारी 'औौर दूं ० शुकदेवविद्यारी मिश्र रचित 1 ]
प्रिय भारत में चिद्या का जैसा
गुर अभाव पाया जाता ।
चदद किसी दूसरे सभ्य देस में
महीं आज दिन द्रसाता 0
बस इसी प्रबल दादन अभाव से
फूटे भारत भाग ग
अथ् इसके परम समुज्ज्वल जस में
लगे मसयानक दाग ॥ 0
सब की, सब भूले की, सब
हर
अद्द ईश्वर सम्बन्धी भी
शान करने हारी ॥
है विद्या मातु पिता सी पाठक
तिय सी अति सुखदानि।
चलाता खो सदा सदायक भेमी
मीत सरिस गुनल्ानि है २॥
उत्तम सुतत सम अति चूद्ध बैस में
चिद्या पाठन करती है ।
सत गुद् सी सिच्छा दे मनुष्य की
मीच बुद्धि नित हदरकी है 1
'पकाकी जन का भी समाज का
देती है आनन्द ।
कलियुग में भी सतयुग का देती
साख सोन स्वच्छन्द है दे ॥
चिचावछ से नर घालमीकि की
अब तक दातै' सुनते हैं ।
हपायन, चेदुष्यास, फृप्ण, की
सुन्दर सिच्छा गुनते हैं पर
कर दिया कपेठ मे पर
जान शान परकाश 1
विधा चल से अध तलक चियागी
उससे छर्ें सुपास २ ४॥
सामाजिक उन्नति चार्य्यगनां की
विद्या चल से जग जाने ।
- चैदिक खुकाछ का सुख अब तक
चेद पाठ से अनुमाने ॥
पुनि परदेशों में भी राजा सम
रद मदन लिदान 1.
चिचा सम दै नदि' तीनि छाक में
छा रतन मददान ॥५॥
सत में केवल ग्यारदद
बरतामा भी करना जानें ।
पुनि अयुत जनें में केवठ दस नर
कछ़िज में पढ़ सुख माने ॥
है मारत विद्या की कुंदुसा यदद
जब तक अति दुखरास ।
तथ सक उन्नति की किसी भांति भी
क्या हा सक्तो आस ॥ ६४
घनधघान कहें कया कहों नैकरी
करनी है मेरे सुत के ।
फिर व्यर्थ परिधम कर उसके पया
करना है चिद्यायुत हे ॥
उत निरधन जन सब घनामाव से
सुत का विधादान ।
करने में हैं न समये हाय दम
हे क्यों कर विद्वान ॥ ७1
अवला करके विदान दर्म क्या
कुछ इस्पीच दिखानी है ।
धाढे में उन्हें नचाने की इम
ने न प्रतिज्ञा ठानी है १
लिखवा कर उनसे प्रेम पत्र कर
के झाचरन तबाद 1
इसके है. नहीं अमीए्ट कार्टदिप
की खुटवानी राद ॥ ८ ॥
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