प्राचीन मुद्रा | Prachin Mudra

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Prachin Mudra by रायबहादुर गोरीशंकर हीराचंद - Raybahadur Gorishankar Heerashankar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(५४) शिलालेखों में छः: सात राजाओं से अधिक के नाम नहीं मिलते । उक्त सिक्कों के श्राधार पर क्तत्रपों का वंश-दूक्त बनाने से यह भी निणुंप्र होता है कि इनमें त्तत्रपों की नाई ज्येष्ठ पुत्र ही श्रपने पिता के राज्य का स्वामी नहीं होता था, कितु पक शज़ा के जितने पुत्र हो, वे उसके पीछे यदि जीवित रहें, तो क्रमशः सबके सब राज्य के स्वामी होते थे; आर उनके बाद थदि वड़े भाई का पुत्र जीवित हो तो वह राज्य पाता था । यदद रोति केवल सिक्कों से ही जानने में आई है । कुशनवंशियोँं के सखिको से जाना जाता हे कि वे शीत- प्रघान देशों से झा हुए थे, जिससे उनके सिर पर बड़ी टोपी, बदन पर मोटा कोट या लबादा और पेरों में लंबे बूट होते थे । राजतरंगिणी में कल्हण ने उनको तुरुष्क झर्थात्‌ वर्तमान तुर्किस्तान का निवासी वतलाया है, जो उनकी पोशाक से ठीक जान पड़ता है । वे लोग श्रभ्निपूजक थे, और बडुधा सिक्कों में राजा अस्िकुंड में श्राइुति देता हुआ मिलता है । वे शिव, बुद्ध, सूये, श्रादि श्रनेक देवताओं के उपासक थे, जैसा कि उनके सिरको पर झंकित झाकृतियों से पाया जाता है । उस समय तुर्किस्तान में भारतीय सभ्यता फैली दुई थी । गुप्त के सोने, चाँदी श्ौर ताँबे के सिक्के मिलते हैं, जिनमें सोने के सिक्के विशेष महत्व के हैं, क्योंकि उन पर इन राजाओं के कई कार्य अंकित किए. गए हैं । जैसे कि समुद्रगुप्त के सिको




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