झासी की रानी | Jhansi Ki Rani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(६ ) बन्देलखयड परजा धमकी । दोनों सेनाओं का सामना होतेड्ो “अटताहो- थरकबर' घर हर-हर महादेवके बुलन्द नारे लगते लगे । कुछुट्टी देर परचात्‌ मार-मार काट-क्राटकी झावाजसे सारा वायुमणडल गज उठा | रुघिरप्राशिनी, रुण्डमुण्डघारिणी -रणचरडी रुदरूपसे श्रपनी रक्त- पिपासता शान्त करने लगी । कई दिनोतक सारे वुन्देलखणड में 'दाढ़ो- चोटी” संघषंको बाजार गरम रहा | दोनों दी सेनाय एक दूसरी को शिकस्त देनेके लिये जो-जान से चेटा करती थों । किन्तु रूत्रो सूखी चुटिया के सामने इत्रये तर रडनेवाज़ी दाढ़ीकी पकने चतो | रणाइ्ण में हथेलीपर सर रखकर लड़नेवाले मरददट्र इ ्टूसे चले थे कि, या तो वुन्देतखण उकी रण भू मिते मरकरही या यवन सेनाको मारकरडी हटेग | परिणाम्‌ यह हुमा कि, इस भोष्प् प्रतिज्ञा सामने, सदासे ऐशो--ग्राराम में हार साननी पड़ी । उस हद रणभूसि छोड़कर भाग चली । मदराष्ट्रीय अन्त तक पीछा किया श्रौर उसे श्रत्यन इनाहावादके नवाब सह से बातका प्रणकर महाराज: को निवाइनेवाली महारा्ट्रीय सेनाके मस्त रदनेवाली सुसर्मोनी सेनाको के पैर उख़ड़ गये और व सेनाने उसका न्त कमजोर बनाकर छोड़ दिया । मदखों बगप और माजवेके सूबंदार दोनों अपनी जान बचाकर भाग गये । मददाराज छुन्रसालपर थाई हुई विपदा मदाराष्ट्रीय सेनाकी सहा - यतासे सदाके लिये दूर छोगई । महाराज इस बातसे श्रत्यन्त ससन्न हुए । उन्दोंने वीरवर बाजीराव को पन्नेमें वु्ाकर उनका यथोचित आगत-स्वागत और सम्मान किया तथा हि वजयी सेनाको अच्छा पुरस्कार देकर गोरबान्वित किया । बुन्देलानरेश, वीरशिरोमणि पेशबासे अत्यन्त




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