झासी की रानी | Jhansi Ki Rani
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
771.66 MB
कुल पष्ठ :
344
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(६ )
बन्देलखयड परजा धमकी । दोनों सेनाओं का सामना होतेड्ो “अटताहो-
थरकबर' घर हर-हर महादेवके बुलन्द नारे लगते लगे । कुछुट्टी देर
परचात् मार-मार काट-क्राटकी झावाजसे सारा वायुमणडल गज उठा |
रुघिरप्राशिनी, रुण्डमुण्डघारिणी -रणचरडी रुदरूपसे श्रपनी रक्त-
पिपासता शान्त करने लगी । कई दिनोतक सारे वुन्देलखणड में 'दाढ़ो-
चोटी” संघषंको बाजार गरम रहा | दोनों दी सेनाय एक दूसरी को
शिकस्त देनेके लिये जो-जान से चेटा करती थों । किन्तु रूत्रो सूखी चुटिया
के सामने इत्रये तर रडनेवाज़ी दाढ़ीकी पकने चतो | रणाइ्ण में
हथेलीपर सर रखकर लड़नेवाले मरददट्र इ
्टूसे चले थे कि, या तो वुन्देतखण उकी रण भू मिते मरकरही या यवन
सेनाको मारकरडी हटेग | परिणाम् यह हुमा कि, इस भोष्प् प्रतिज्ञा
सामने, सदासे ऐशो--ग्राराम में
हार साननी पड़ी । उस
हद रणभूसि छोड़कर भाग चली । मदराष्ट्रीय
अन्त तक पीछा किया श्रौर उसे श्रत्यन
इनाहावादके नवाब सह
से बातका प्रणकर महाराज:
को निवाइनेवाली महारा्ट्रीय सेनाके
मस्त रदनेवाली सुसर्मोनी सेनाको के पैर उख़ड़
गये और व सेनाने उसका
न्त कमजोर बनाकर छोड़ दिया ।
मदखों बगप और माजवेके सूबंदार दोनों
अपनी जान बचाकर भाग गये ।
मददाराज छुन्रसालपर थाई हुई विपदा मदाराष्ट्रीय सेनाकी सहा -
यतासे सदाके लिये दूर छोगई । महाराज इस बातसे श्रत्यन्त
ससन्न हुए । उन्दोंने वीरवर बाजीराव को पन्नेमें वु्ाकर उनका यथोचित
आगत-स्वागत और सम्मान किया तथा हि
वजयी सेनाको अच्छा पुरस्कार
देकर गोरबान्वित किया । बुन्देलानरेश, वीरशिरोमणि पेशबासे अत्यन्त
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