काले हायर संस्कृत ग्रामर | Kale Hayar Sanskrit Grammar

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Kale Hayar Sanskrit Grammar by डॉ. कपिलदेव द्विवेदी आचार्य - Dr. Kapildev Dwivedi Acharyaमोरेश्वर रामचन्द्र काले - Moreshwar Ramchandra Kale

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

डॉ. कपिलदेव द्विवेदी आचार्य - Dr. Kapildev Dwivedi Acharya

No Information available about डॉ. कपिलदेव द्विवेदी आचार्य - Dr. Kapildev Dwivedi Acharya

Add Infomation About. Dr. Kapildev Dwivedi Acharya

मोरेश्वर रामचन्द्र काले - Moreshwar Ramchandra Kale

No Information available about मोरेश्वर रामचन्द्र काले - Moreshwar Ramchandra Kale

Add Infomation AboutMoreshwar Ramchandra Kale

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
(६) किया है। डा० बाबूराम सपना के श्रतुसार पतश्जलि योतदद (सम्मवत गोड़ा) के निवासी थे गौर उनकी माता का नाम सौणिका था। पतब्जसि पाणिनि के पोषक हैं। इनरी सबसे बढ़ी विशेषता सरत श्रौर प्रवाहमय। शौसी है जो महामाप्य ये लिखने में अपनाई गई है। पतस्जलि वी व्यास्याय्रा को इप्टि' नहते हैं। पतब्जति ने वात्यावन की मुटियों का सुधार बरके पाणितिं के मत दी पुष्टि की हैं। गाणिनि, कात्यायन श्रौर पतल्जलि वे फरचातु सीलिव पयापरणी मा सु समाप्त सा हो जाता है। इसवा कारण यह है कि उपर्युकव तीना नप परत मुनियों ने व्याकरण की विवेचना को चरम सीमा पर सुनिम्रय फा परवतों पहुँचा दिया था प्रौर सम्भवत उसने प्रागे निम्न काल निर्माण बरते की भ्रावश्यरता न रह गई थी । फलत टीका-युग वा प्रारम्भ होता है। इस युग मं 'पाणिमि, कात्यायन श्ौर पतब्जलि के तियमों को समझाने एवं उन्हें वाधगम्य बताने की विविध विधियाँ निकाली गई। इन विधियों मे टीका विधि सर्वोत्तम सामशी गई। मागें घल पर कुछ विद्ानों ते श्रावश्यर पाणितीय सूझों ता छोड़े छादे रूपा में सप्रह भी किया और उन्हें नवोन व्यवस्था भी प्रदान को। सातपी ई० में जयादित्य प्ौर वामत ने अ्रप्टाप्यायो पर टीका लिला, नो “काका के नाम से प्रप्तिद् हुई। 'काशिका' पर उपटीकाएँ लिखी गईं। जिनेद्ट बुद्धि ने न्यास भौर हरदसे मे पदमनजरी उपटीकाप्रो की रवना'को। महामाप्य के टीकाकार भतू हरि मे 'वाक्यपदीय' प्रत्य लिखा। वाकयपदीय में प्रागम, वाक्य श्रौर प्रकीर्ण ये तीन का (भब्याय) हैं। भतूहिरि का चलाया हुमा स्फोटवाद श्राज भी श्रणिद्ध है। महामाप्य गर 'प्रदीप' नामक भन्य ठीका श्रेय सिखने वाले कारमोरी पड़ित कयट हैं । दीकाग़ों और उपटीका्ी के पश्चात्‌ पाणिनोय सूपो की व्यवस्था की आर विद्वातों वा ध्यान गप्रा । इस दिखा में सनू १३४५० ई में विमल्त सरस्वती ने 'रूपभाला' और ह५वी शतों मे पड़ित रामचन्द ते 'प्रक्रियावौमुद्दी' की रचना की। १६३० ई० के लगमग मट्रोजिदीक्ित ने पा्थिनोय सुत्रो को एक नयी व्यवरया देकर सिद्धास्त-कौमुदी को रचनर को । सह पुस्तक इतनी अ्रधिक




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now