संस्कृत व्याकरण प्रवेशिका | Sanskrit Vyakaran Praveshika

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Sanskrit Vyakaran Praveshika  by आर्थर ए॰ मैकडानल - Aarthar A॰ Maikdaanalडॉ. कपिलदेव द्विवेदी आचार्य - Dr. Kapildev Dwivedi Acharya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ततायब सम्करण का आमख ह संस्कृत व्याकरण के इस नये संस्करण का सम्पादत करते हुए मुझे पूर्व संस्करणों में जो कतिपव मुद्रण दोष मिले उन्हें मैंने यहां नहीं आने दिया है ओर पृस्तक् को छात्रोपयोगी बनाने के लिये आवश्यक परिवर्तन भी कर दिये हैं, जसे कि प्रत्येक पृष्ठ के शिखर-कोणा में प्रध्याय और अनच्छेद के सांकेतिक अंक भी दे दिये हैं । इस कृति के अनुच्छेदों में संस्कृत व्याकरण के प्रायः सभी नियम झ्राजाते हैं। इनमें से कई प्रनुच्छेद प्रारंभिक घिक्षा के लिये अनुपयुक्त होने के कारण वज्य हैं; वे उत्तरकालीन भश्रध्ययन के लिये ही उपादेय हो सकते हैं। प्रारम्भिक पाठ्यक्रम के लिये निम्न सूची में दिये गये अनुच्छेद ही उपयोगी हैं । इन अनु- च्छेदों के संकलन से संस्कृत व्याकरण की प्रारम्भिक पाठ पुस्तक का निर्माण हो जाता है । ९१: १-७, ८-१९, ६३. २: १६-२२, २७, ३००३४, ३६ अ. आ., ३७, ३८ ४०, ४२-४४, ४५, (१), (२), १५२, १५, ६५, ६७. ३:७०, 3१, ७३, ७४, ७७, ८५५, ८७, ६०, (१), ६७, १००, १०१, (ई) (१० ६०), १०३, (१) (२) १०६-१११, १२०. ४: १२१-१२८, १३१, १३२ (केवल वर्ते० परस्मे० पृ० ८६, ८55), १३१, १३६, १३८, (१) (केवल ४ तुदू, परस्म०), १४१ (क) (केवल परस्म॑०), १४३ (१) (केवल परस्म ०) १४७ (केवल परस्म०), १४८ (केवल अदात्‌), १५१ (केवल परस्म ०), १५४ (केवल वतं० का०), १२६, १६०, (१), (२), १६२, १६३, १६७, १६5, १६६, १७२, १७५. जब छात्र इन अनुच्छेदों को पढ़ लेगा तब उसे संस्कृत पाठमाला के पाठ समभने की योग्यता हो जायेगी । इन पाठों में कुछ नये व्याकरण रूप भी मिलेंगे जिनकी व्याख्या उन अ्रनुच्छेदों में की गई है जो उसने छोड़ रखे थे । अब वह उन प्नुच्छेदों का भी अध्ययन करेगा । इस प्रकार तथा शब्द कोष




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