मंदिर प्रवेश और अस्पृश्यता निवारण | Mandir Praveshika Aur Asprishyata Nivaran
लेखक :
डाक्टर भगवानदास - Dr. Bhagwan Das,
देवनारायण द्विवेदी - Devnarayan Dwivedi,
मोहनदास करमचंद गांधी - Mohandas Karamchand Gandhi ( Mahatma Gandhi )
देवनारायण द्विवेदी - Devnarayan Dwivedi,
मोहनदास करमचंद गांधी - Mohandas Karamchand Gandhi ( Mahatma Gandhi )
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10.29 MB
कुल पष्ठ :
165
श्रेणी :
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डाक्टर भगवानदास - Dr. Bhagwan Das
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देवनारायण द्विवेदी - Devnarayan Dwivedi
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मोहनदास करमचंद गांधी - Mohandas Karamchand Gandhi ( Mahatma Gandhi )
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(६ 2)
धघर्म के प्राणों को ही खा रही है। खान-पान और विवाह के
बंधनों से हिन्दू समाज की बाढ़ रुकती है। मैं समकता हूँ कि
यह अंतर मौलिक है । आंदोलन के प्रचंड वेग में इसे बहुत
अधिक महत्व देना और इस प्रकार मुख्य प्रश्न को ही बिगाड़
देना मूखंता होगी । जनता से यकायक यहद कहना कि अस्प्ू-
श्यता निवारण के कार्य को उससे भिन्न दृष्टि से देखो जिससे
देखना उन्हें सिखाया गया है, जनता के साथ विश्वासघात भी दो
सकता है । इसलिये जहाँ जनता तैयार हो वहाँ भले दी सहभोज
हों पर इसे भारत व्यापी आंदोलन का अंग न बनाना चाहिये ।
सनातनी होने का दावा
_... मुभे अपने को सनातनी कहनेवालों की ये चिट्रियाँ मिली
हैं । कुछ में क्रोध भरे शब्द हैं । इनके लिये 'अस्प्श्यता हिन्दू-घर्म
का सार है। कुछ मुमे धर्मत्यागी समभते हैं । कुछ का खयाल
है कि मैंने क्रिश्चियन तथा इस्लाम धर्मों से अस्पश्यता आदि के
'बिरोधी विचार श्रहण किये हैं । कुछ ने अस्परश्यता का प्रतिवाद
करते हुए वेदों के प्रमाण दिये हैं । इन सबको इस वक्तव्य में
'उत्तर देने का मैंने वचन दिया है । इसलिये चिट्ठी लिखनेवाले
न लोगों को यह बताने का साहस करता हूँ कि में सनातनी
होने का दावा करता -हूँ स्पष्ट ही सनातनियों की परिभाषा
मेरी परिभाषा से भिन्न है । मेरे लिये सनातन धर्म वह प्रधान
धर्म है जो पीद़ियों से चला आ रहा है, जिसका अस्तित्व इति-
हास काल के भी पूव था और जिसका आधार वेद तथा उसके
बाद लिखे गये प्रंथ हैं । मेरे लिये वेद, इश्वर और 'दिन्दू-घर्म
ब्लमान अनिवेचनीय हैं ।
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