मंदिर प्रवेश और अस्पृश्यता निवारण | Mandir Praveshika Aur Asprishyata Nivaran

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Mandir Praveshika Aur Asprishyata Nivaran by डाक्टर भगवानदास - Dr. Bhagwan Dasदेवनारायण द्विवेदी - Devnarayan Dwivediमोहनदास करमचंद गांधी - Mohandas Karamchand Gandhi ( Mahatma Gandhi )

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देवनारायण द्विवेदी - Devnarayan Dwivedi

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मोहनदास करमचंद गांधी - Mohandas Karamchand Gandhi ( Mahatma Gandhi )

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(६ 2) धघर्म के प्राणों को ही खा रही है। खान-पान और विवाह के बंधनों से हिन्दू समाज की बाढ़ रुकती है। मैं समकता हूँ कि यह अंतर मौलिक है । आंदोलन के प्रचंड वेग में इसे बहुत अधिक महत्व देना और इस प्रकार मुख्य प्रश्न को ही बिगाड़ देना मूखंता होगी । जनता से यकायक यहद कहना कि अस्प्ू- श्यता निवारण के कार्य को उससे भिन्न दृष्टि से देखो जिससे देखना उन्हें सिखाया गया है, जनता के साथ विश्वासघात भी दो सकता है । इसलिये जहाँ जनता तैयार हो वहाँ भले दी सहभोज हों पर इसे भारत व्यापी आंदोलन का अंग न बनाना चाहिये । सनातनी होने का दावा _... मुभे अपने को सनातनी कहनेवालों की ये चिट्रियाँ मिली हैं । कुछ में क्रोध भरे शब्द हैं । इनके लिये 'अस्प्श्यता हिन्दू-घर्म का सार है। कुछ मुमे धर्मत्यागी समभते हैं । कुछ का खयाल है कि मैंने क्रिश्चियन तथा इस्लाम धर्मों से अस्पश्यता आदि के 'बिरोधी विचार श्रहण किये हैं । कुछ ने अस्परश्यता का प्रतिवाद करते हुए वेदों के प्रमाण दिये हैं । इन सबको इस वक्तव्य में 'उत्तर देने का मैंने वचन दिया है । इसलिये चिट्ठी लिखनेवाले न लोगों को यह बताने का साहस करता हूँ कि में सनातनी होने का दावा करता -हूँ स्पष्ट ही सनातनियों की परिभाषा मेरी परिभाषा से भिन्न है । मेरे लिये सनातन धर्म वह प्रधान धर्म है जो पीद़ियों से चला आ रहा है, जिसका अस्तित्व इति- हास काल के भी पूव था और जिसका आधार वेद तथा उसके बाद लिखे गये प्रंथ हैं । मेरे लिये वेद, इश्वर और 'दिन्दू-घर्म ब्लमान अनिवेचनीय हैं ।




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