द्रव्याणुरोग प्रथम प्रवेशिका | Dravyanurog Pratham Praveshika

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Dravyanurog Pratham Praveshika by श्री ज्ञानसुन्दरजी - Shree Gyansundarji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(११) १ प्रकृतिग्रध | १४८ प्रटदिका बधका होना । ३ स्थितिबन्ध । क्मोड्ठि स्ितिका बन्ध |, ३ अनुमागवन्ध कर्मेक्रि अम्दर रस्का पड़ना । $ प्रदेशबन्ध | प्रदेशोंका बध दोना | प्रश्न --मोक्षतत्तका वया लक्षण है । उत्तर --अष्ट कर्मोत्ते मुक्त करे उसे मोक्षतत्व कहते हैं निप्तता भेद चार क्रमसे पढ़े |: प्रथम ज्ञान, द्वितीय दन, तृतीय चारित्र, चतुथे तपश्चये इति | (१५) आत्मा आह-द्वव्यात्मा, कपायात्मा, योगात्मा, उपयोगात्मा, शानात्मा, दर्शनात्मा, चारित्रास्मा, बीयीत्मा | (१६) दडक २४-सात नारकीका एक बटक ( सात नारकीका नाम ) घमा | बद्या २ शिक्ष ३ भमणा ४ रिठा ९ मषा ६ माधवती७ (सात नारफीकागोज) रत्नप्मा है शर्कराप्रमा | दालुकाप्मा ३ पक्प्रमा ४ धृमप्रमा ९ तमप्रमा ६ तमतमाप्रमा ७ दश्च भुवनपतिश्न दूध दडक दश भुवनपतिके नाम अछुर- कुमार १ नागझुमार २ सझुवरणेक्रमार ३ विदुत्कुमार 9७ भग्निद्धमार * दीपकुमार ६ दिशिक्ृमार ५ उदचिकुमार ८ वायुदुमार ९ स्तनितकुमार १०




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