सुगम संस्कृत - व्याकरण | Sugam Sanskrit Vyakaran

Sugam Sanskrit Vyakaran by आनंद स्वरुप शास्त्री - Anand Swaroop Shastri

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about आनंद स्वरुप शास्त्री - Anand Swaroop Shastri

Add Infomation AboutAnand Swaroop Shastri

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
६ दै ४५. वर्णोंके झन्य भेद-- . क 9 . ग्रघोष 5पएत80--म्रस्येक बग का पहला दूसरा वण तथा __ श ष स अघोषहें । इन्हें पुरुष नि वण भी कहते हैं । एं घोष 800&008 --अघोष वर्ण के अतिरिक्त शेष वण स्व॒र तथा व्यज्जन घोष हैं । सूब स्वर घोष हैं । घोष वर्णों को कोमल 300. भी कहते हैं । के ख 0 अझल्पग्राण-- प्रत्येक वर्ग के पहले तीसरे पाँचवें बण तथा .... झन्तःस्थ वें अरुपप्राण कहाते हैं। _.. _ ्‌ ए महाप्राण 5 5एए806 -प्रत्येक वग के दूसरे चौथे बण तथा ऊष्म बण मद्दाप्राण कहाते हैं । विसग भी महाप्राण ही । हु कोमल महाप्राण है झौर विसग ऊुछे परुष मददाप्राण है। निम्न तालिका में वर्णों के ये चारों प्रकार दिखाये गये हैं- घोष घोष अल्पशप्राण न महाश्राण क.ख़ | ग घ ड. | क ग ड ।. ख घ ८ ठ | 5 ढ़. ण सकमवलयाकागडर तय दुथन प फ | ब भ सम श ष स ह विसग | छानुस्वार जले असपमरगललस्पलशपरलेवमलयसभर नैललकलशलेलमेशममममधमममकार अथा फिनडन बााननकदडतनबमवभादितकी व कलककपेा कार |. री है नारवस तप... पलनिसेत तर सर नहा. ता




User Reviews

  • Deepak

    at 2019-09-12 22:28:48
    Rated : 10 out of 10 stars.
    "दुर्लभ पुस्तकों का संग्रह।"
    दुर्लभ पुस्तकों का संग्रह पढ़ने को मिला यह अपने विचार को मूर्तरूप देने का सबसे सुनहरा मंच है। साधुवाद।
Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now