बालरोग चिकित्सा | Balrog Chikitsa

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Book Image : बालरोग चिकित्सा - Balrog Chikitsa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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७ सुख नेत्र नाक दाथ पाँव आदि अंगों को वारम्वार निरीक्षण करके बालकों दे रोग का निश्वय करना चाहिये । बालोपयोंगी नियम । १ बालक को श्त्यन्त दलेके दाथसे उठाना शरीर लिटाना पादिये जिससे उस के कोमल शरोर पर थोड़ा भी झाघात न पहुंचने पावे । २ सोते हुए वालक/को सद्सा न जगाना चाहिये । क्योकि इससे भयभीत होकर वह रोग ग्रस्त दो सकता है। ३ प्यार करते समय बालक को नोचे ऊंचे न उछालना चाहिये और शिर नीचे करके पाँव पकड़कर कदापि न उठावे इससे बालक डर जाता है तथा बवाउु का भकोप दोता है । ४ छोटे बाहाक को जब तक उस वेठने शक्ति न- श्राजाय - तब तक उसको कदापि बेठाने का प्रयत्न न करना चाहिये इससे कुबड़ापन होने का डर रहता हे | ः थ दोटें २ खिलौंनें को पाकर अथवा जो चस्तु बालक के दाथ में श्राती है स्वसावतः उसको वद मुख में डालता है इंस लिये उसके हाथ में कोई ऐसी छोटी चस्तु न देनीं चाहिए जो गले के भीतर जासके इससे धायलझुद उपस्थित दोने का मय रददता है। ६ बालक को मधुर वचनों से सदा प्यार करना




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