कबीर साहब का सखी-संग्रह | Kabir Sahab Ka Sakhi Sangrah

Kabir Sahab Ka Sakhi Sangrah by पं. महवीर प्रसाद मालवीय Pt. Mahavir Prasad Malviya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दर छकवीर साखी-ख' ग्रह कर कमान सर साथि के, खेचि जा मारा माहि। भीतर बि पे से मरि रहे, जिवे थे जीवे नाहिँ ॥८९॥ जबही. मारा खेचि के, तब मैं मूआ जानि । लगी चाट जा सबद की, गढ़ कलेजे. छानि ॥८२॥ सतगुरू मारा बान भरि, डाला. नाहिं. सरीर । कहु चुम्बक क्या करे सके, सुख लागे वेोहि. तीर ॥८३॥ सतगुरु मांग तान. कर, सबद सुरंगोी बान ।... श्रेरा मारा फिर जिये, ता हाथ न गहूं कमान 1८2 ज्ञान कमान आओ लव गुना , तन तरकस मन तीर । मलका* बहै तत सार का, मारा हदफ' कबीर ।॥।८४॥। कड़ी कमान कबीर की, घरी. रहै. चागान । केते जाघा पचि.. गये, खींचें संत सुजान ॥८5॥ लागी गाँसी सुख भया, मरे न जोवे केोय । कहै कबीर से अमर भे, जावत मितेक हाय ॥८७/। हँसे न. बाले उनम॒नी, चंचल मेला. मार । कबीर अंतर बेथिया, सतगुरु का... हथियार ॥८८॥। गंगा. हुआ... बर्वरा, बहिंरा. हूआ कान ।.. पॉयन से पंगुला हुआ, सतगुरु मारा. बान 15९0 सतगुरू मारा बान भरि, टूदि गया सब जेब । कहूँ आपा कहूँ आपदा, तसबी कहूँ , कितेघ ॥९५॥ सतगुरू मारा प्रेम से, रही. कटारी. टूट । वेंसी अनी न. सालही, जेपी. साले... मूठ* ॥९१॥ (0 कमान को डोर । (२) गाँली । : ३) निशाना । (थ बदल यानी मे थे. मार के दटा दिया झौर डनपुनी दशा प्राप्त हुई । (५) ज़ेबाइल, साज्ञ सामान । (६ ) झनी अझधांत नेक कटोरी का जो टूट कर हृदय में रद्द गई वह इतना कष्ट कद देती है जितना सूठ का बाइर रद्द ज्ञाना, यानां प्रेम कटारी समूची क्येँ नचुखशद् |... ........ ..... पर, ,सप गि




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