यात्रा के पन्ने | Yatra Ke Panne
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16.83 MB
कुल पष्ठ :
450
श्रेणी :
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No Information available about राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)७ पहिले यददा जमा हुपे थे । श्रपने पुराने परिचित चीनी लामा से मेंट हुई श्रौर तीन घंटे तक उनसे आते होती रही । चीनी लामा के पिता चीन से आ्राथे थे लेकिन चीन श्रौर नेपाल में कुछ ऐसी प्रथा सी चली श्राई है कि एक दूसरे देश में पैदा हुए. श्राग्मी श्रपनी राष्ट्रीयता को कायम रख सकते है प्रधानता पिता को ढी जाती है । चीनी लामा के पिता चीनी थे इसलिये वहद भी चीनी हैं तिब्बत में नेपाली लोगों की तिव्बती स्त्रियो से हुई संतानों मैं पुरुष सभी नेपाली प्रना होते हैं श्रीर ल्दासा में ऐसे नेपाली दो-ढाई हजार हैं । श्रव नवीन तिब्बत इसे मान नहीं सकता इसके लद्ण हिखलाई पढ़ रे है । उस समय इन नेपाली-पुत्रो को बहुत उपेदित श्रौर झपमाभित रहना पड़ता था | नेपाली पिता श्रपने हाथ से उठाकर जो कुछ दे दे बद्दी पुत्र की संपत्ति होती थी और ऐसे देने वाले पिता बहुत कम ही मिलते थे । इन नेपाली-पुर्रों को नेपाली लोग खचरा ढोगला कद्द कर श्रपमान की दृष्टि से देखते थे । झ्रव तो झाशा है नवीन तिव्वत नेपाली पिताद्ी की सम्पत्ति का उत्तराधिकारी सबसे पहिले इन नेपाली संतानों को मानेगा । २१ फरवरी को गेशे घर्मवद्ध त की चिद्दी मिली । गेरो धर्म-बद्ध न की स्पूति १४ साल बाद झाज ४ दिसम्बर १६५१ दिल को दुःख दे रही है श्रमी कल लाता से साहू न्रिरलमान साहू धर्ममान के कनिष्ठ पुत्र की जो चिट्ठी मिली उसमें लिखा है कि गेशे का देहान्त २ महीना पहिले हो चुका । सचमुच ही गेशे के बारे में कहा जा सकता हैं- हसरत उन शुचो पे है जो विन खिले मु्का गये |? गेशे बड़े प्रतिमाशाली पुरुष थे चतुर चित्रकार थे दर्शन के. झच्छे पणिडत थे सुकवि थे मारत लंका शरीर बर्मा की यात्रा कर चुके थे श्र भारत में करीव १० वर्षों तक रह कर उन्होंने शंग्रेजी का भी झच्छा पत्चिय प्राप्त कर लिया था | हिव्बती इतिहास का उनका शान श्ाघुनिक विद्वानों जेसा था | उनके परिपक्व शान का उपयोग इस वक्त होने वाला
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