महाराज रणजीतसिंह | Maharaja Ranjit Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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७४ सरदार बहुत भांग पीता था इस छिये यह मिसछ इस नाम से श्रमिद्धहुई । येद्दी भगी सरदार लोग पजाव में सब से पहले बहुद चढरान हुए । कई ढास वी आमदनी का सुरुफ इसट़ करने में आ गया और सारे मिसठ्वाठे इनसे डरने और इनको अपता बडा मानने लगे ययपि भगी सग्दार छोग बहुन चलवान हुए पर अन्य मिसठवाले पूरी तरह से उनके अधीन न ये । लच सामना होता तो दव जाते पर मौका पाफर फिर स्पतन रूप से ठूट पाट करते और जागीरें दसछ दिया फरते थे। भाई दा की तरह भगी सरदार सारी सिक्स जाति के नायक नहीं हो सके क्योकि इस समय अफगानिस्तान की ओर से प्राय अददमदथाद दुर्रनी की चढाइयों हुआ करती थीं भर सिक्सों को समय समय पर इस कारण से द्वानियों भीं उठानी पढ़ती थीं पर उरयी दी दुसेनी पीठ मोदते सिक्ख छोग फिग् मे प्रमछ हो जाते और खुद पाठ मचाने उगते। अब सिक्यसों के यारदद गोद या मिसठ हो गए थे जिनके नाम इस प्रकार हैं १ फुर्लीकिया.. मिसल ७. करोरासिंदिया मिस २ अहलवबालिया ८ निशानिया दर 35 मसी न ९ सुकर्चकिया . ४ कन्हैया क ० दूलेखवाढिया . ४० रामगढिया . ... ११ नवकी के ६ सिंदपुरिया ग १२ थदीदा म इनमें से फुलरियोँ मिसख्वाठों के वशघर मंहारांज गे कर




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