अज्ञेय | Agyeya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.41 MB
कुल पष्ठ :
84
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)खिन्ता की पहली रेखा 15 खिस्ता नाम एकाधिक अर्थ में सार्थक लगता है । यों तो विश्वप्रिया मानों प्रकृति की ओर से पुरुष को सम्बोधित और निवेदित है और एकायन मानों प्रकृति की ओर से पुरुष को सम्बोधित काव्य किन्तु ध्रकृति और पुरुष शीर्षक से जो दाशेनिकता व्यंजित होती है उस दार्शनिकता से अज्ञेय का सम्बन्ध बैसा नहीं है जेसा मसलन जयशंकर प्रसाद का है । सम्बन्ध तो निर्सन्देह है किन्तु उससे अलग और लगभग उलटा जो छायावादी-रहस्यवादी कवि का था । कवि-आलोचक विजयदेवनारायण साही ने लिखा है प्रसाद अनुभूति को दर्शन में धूलानेवाले कवि हैं जबकि अज्ञेय ने दर्शन को अनुभ्ति में घुलाने की राह निकाली । यह सूत्र निधिवाद रूप से स्वीकाय॑ न हो तो भी प्रसाद की परम्परा में प्रसाद के बाद के अगले मोड़ की कविता को समझने में मददगार अवश्य है । हमने कोठरी की बात कहानी के एक्जिस्टेंशियल स्वाद का उल्लेख करते हुए चिन्ता को उससे जोड़ा था तो अकारण नहीं जोड़ा था । अस्तित्ववादी दर्शन हाइडेंगर यास्पसं आदि ने हमारे समय में जो एक ज़रूरी काम किया वह यही किया दर्शन को अनुभूति में घुलाते हुए स्वयं दर्शन को उसकी आधुनिक अगति से उबारने की राह निकाली । साहित्यिक संवेदना के स्तर पर हमारी अपनी परिस्थिति को अज्ञेय का योगदान कुछ इसी तरह का है और वह इसीलिए सार्थक है कि उनका यह कायें अपने मूलोदुगम में सर्वथा मौलिक और स्वत स्फूत्ते था चिन्ता और कोठरी की बात दोनों ही अस्तित्ववाद की साहित्यिक छाया से सबंधा मुक्त एक ऐसे स्वाधीन --हालाँकि संकटापन्त--व्यक्तित्व और अस्तित्व की मौलिक छटपटाहट को व्यक्त करनेवाली रचनाएँ हैं जो नितान्त अपनी परिस्थिति से जूझता हुआ आत्म-चेतना और आत्म-प्रत्यभिज्ञा की नयी राह के अन्वेषण में लगा हुआ है । चूँकि उसकी पीड़ा उसकी जिज्ञासा मौलिक है सच्चे अर्थों में आधुनिक है इसीलिए वह परम्परा बनने में और परम्परा को भी नया जीवन नयी गतिशीलता प्रदान करने में समये है । कामायनी में हमने पढ़ा था ओ घिन्ता की पहली रेखा अरी विश्व-वन की व्याली ज्वालामुखी कंप के भीषण प्रथम स्फोट-सी मतवाली अज्ञेय की चिन्ता प्रसाद की चिन्ता न हो किन्तु वह उससे अनिवार्य रुप से जुड़ी हुई है। नह भी अन्तःस्तल में फूट जगानेवाली है। वह भी अरी हुदय की तृषित हुक--उन्मत्त वासना हाला करके सम्बोधित की गयी है। चिन्ता का कवि अपनी पुंजीभूत प्रणय-वेदना से जिस तरह विश्वक्षेत्र में खो जाने का विस्मृत हो जाने का आह्वान करता है वह आँसु और कामायनी की भाव-
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