रोमाचक रूस में | Romanchak Roos Me

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Romanchak Roos Me by डॉ सत्यनारायण - Dr. Satyanarayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तवांरेदा घ् वहीं । उसने जहदाजकी रोशनी दिखलाते हुए. कहा । घुघली-सी चेतना आई । वास्तव आज ही तो मेरा जहाज खुलने- वाला था । पर वह तो नामके ही समय खुल गया होगा | लेकिन वह तो मेरा जहाज नहीं रोदनीकी ओर थोडा ध्यानसे देखकर मैंने कहा । खेर वहाँ तक चलो तो सही किस लिए? में रुक गया । साबुकता छोड़ा वह भी तन कर खडी हो गई और तीव्र झब्दोमे बोली भावुकता दही जीवन नहीं । उसने मेरे कंघपर हाथ रखा । मुझे बिजली-सी लगी । हाथ हटा डेनेका साहस नहीं हुआ । उसकी भी आंगेकी बाते शरारती बच्चोको फुसलानेकी भीति होने लगी । उसके साथ चलनेंके लिए में बाध्य हुआ । नर भाई मेरे रास्तेसे अपने छोटे भाइकी मौति वह मुझे समझाने लगी बडी बेरहमीके सगम्रामका ही नाम जीवन है । इस संग्राम विश्राम नहीं अख्र रखना नहीं सघिकी आया नहीं । अगर तुम मनुष्य बने रहना चाहते हो तो सोते-जागते उठते-बेठते अहर्निशि तुम्हे जूते ही रहना पड़ेगा । लेकिन समिनीकोा. . तुम चाहो या न चाहो उसे छोड़ तुम्हें जीवित रहना ही पड़ेगा । उसने बात काट्ते हुए कहा प्रेम और आनन्द धोखा देनेवाले क्षणिक मित्र हैं उनका एकमात्र काम ददयकों दुबंढ बना डालना है । सबसे बढी लड़ाई तो यहीं हुआ करती है । तुम्हे अपनी ओरसे लठकार कर । गे




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