पंतान्जल योग दर्शन | Patanjal Yog Darshanam

Patanjal Yog Darshanam by ब्रह्मलिमुनि महाराज - Brahmlimuni Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रद र इस आत्मा को नहीं जानता है । थोडी देर के लिये यह बात मान मी छिया जाय कि आगम प्रमाण से भी मत्यक्ष ज्ञान होता है तो भी योगान्यास के घिना असमाहित मन रहने पर इत्दरियों से जैसा . रूपादि का अपरोक्ष ज्ञान नहीं होता है बसे ही ततत्वमस्यादि महा- वाक्य-से भी आत्मा का अपरोक्ष ज्ञान होना असम्भव है । अतः मन - को एका् करने के छिये योग की परम आवश्यकता है अत एवं योगतत्त्व के ज्ञान के छिये योगद्शन का आरम्भ सफल दूँ । यदि कहें कि- सभी दर्शनकारों ने अपने अपने दर्शन में यर्करिश्नितू योगतरव का निरूपण किया है । अतः बढ़ीं से योग- सम्बन्धी सब विषयें का ज्ञान हो जायगा तो उसके लिये योगदुशन का आरम्भ निप्फल है १ तो यह कहना मी समुचित नहीं । क्योंकि अन्य दर्दोनों में जितना द्रव्यादि पदार्थों का निरूपण विस्तार से किया गया है उतना योगदर्शनप्रतिपाद्य पदार्थों का नहीं और योगदर्शन में योग तथा योगोपयोगी पदार्थों का ही विशेष रूप से निरूपण किया गया है । अतः अन्य दर्शनों में योगदुशन गताथ नहीं । यदि कह कि- क्षणिक विज्ञानवाद आदि बाह्य पदार्थों का प्रत्यास्यान योग- दर्शन में क्यों किया गया है ? तो यद कहना भी उचित नहीं । क्योंकि चित्त के क्षणिक होने पर सदा स्वतः स्थिर रदने से उसके छिये चित्त स्थिर करने के छिये योग व्यथ हो जाता दे ? और विवेक ज्ञान की निप्पत्ति के लिये योग की परमावइयकता हैं १ अतः योगोपयोगी चित्त को स्थायी सिंद्ध करने के लिये क्षणिक विज्ञानवाद का निराकरण किया गया है । मत एव यद क्षणिक विज्ञानवाद का निराकरण 9 भी योग के उपयोगी ही दे अनुपयोगी नहीं




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