भारतेंदु के निबंध | Bharatendu Ke Nibandh

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Book Image : भारतेंदु के निबंध  - Bharatendu Ke Nibandh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रद पवेग्नाथ का यात्रा उन के प्रकति-प्रेम का शच्छा परिव्यय देवी है श्रौर चहत से विद्वानों के इस कथन का खंडन करती है कि को प्रकतति से सच्चा प्रेम न था योर उनके वन कुनिस तथा परंपरागत एवं रूढ होते 5 मारतेदु ने प्रकृति का यथातलध्य चियात्पक संवेदनात्मक तथा श्यारलकारिक सभी प्रकार का चर्शन किया है। स्थानासाव से यहां पर केवल एक ही उद्धरण दिया जाता है जिसमें भारेंदु का प्रकति प्रेम स्प्र हो जापगा-- ठदी हवा मन की कली स्विलाती हुई चहने लगी ० दूर से थानी शोर काटी रंग के पर्वतों पर सुनह्रापन था चज्ञा० कहीं श्राधे परत बादलों से थिरे हुए ही एक साथ वाष्प निकलने से उन की चोथ्यि छिपी हुई सर कहीं पवारों शोर से उन पर जनघारा पात से बुक्के की ट्ोली खेलते बड़े दी. सुट्दाने सालूम पढ़ते थे 1? ये यात्राविपयक्त ले य भारवेंदु के उल्लास दाम्य शरीर व्यंग के पुट से सजीव हैं। बीन-बोच से मार्शिक चुटकुला का समावेश भारतेंदु की विशेषता है । इसी प्रकार वे सीठी घुटिकर्यो लेते हुए श्रौर ब्यंग कमते हुए अपने लेख की. सनोरंज- कता बराबर बनाए रखते है । ट्रेन की शिकायत करते हुए शोर ऑगरेजों की घाँघली पर चोभ करते हुए वे कहते है कि भी ऐसी टूटी फूटी जैसे हिंदुओं की किस्मत श्र हिम्सत० तो तपस्या करके गोरी गोरी कोख से जन्म ले तब ससार में सुख मिले ० 1१ दूसरा व्यंग कुछ तीत्र श्र कट्ठ है-- पहाजन एक यहां हैं वह टूटे खपड़े मैं बेठे थे० तारीफ यह सुना कि साल भर मैं दो बार कैद होते हैं क्योकि महाजन पर जाल करना फर्ज है और उस को भी छिपाने का शऊर नहीं 1 प यों तो व्यंग श्रोर हास्य की छुय उनकी शधिकांश गय-कुतियों में यत्र-तन्र देखने को मिलती है फिर भी उनके कुछ लेख द्ास्य श्रोर व्यंग की दृष्टि से ही लिखे गए हैं । इन हास्यप्रधान लेखों का उद्देश्य शुद्ध हास्य का सर्जन आआलो चना श्रान्षेप नयंग परिह्ास सभी कुछ है । व्यक्ति समाज राजनीति सभी व्यंग के विषय जनाए गए हैं । भारतेंदु मैं शुद्ध हास्य श्रपेक्षाकत कम है और नेक लिपि कलर के है नल | ड़ अत पका फल एलन नि रेप विजन लक बनता कक का लि # हरिएचंद्रचद्रिका दर सोहनचद्रिका खंड ७ संख्या ४ श्राषादू शुक्क रंवत्‌ १९३५४ । पे पे हरिएचंद्रचंद्रिका खंड ६ मंत्र ८ फरवरी १८७९ पृष्ठ १५ |




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