योग शिक्षा | Yog Shiksha

Yog Shiksha by रजनी गौतम - Rajni Gautam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्थिरसुखमासनम्‌ ुखपूर्वक स्थिरता से बहुत काल तक बैठने का नाम आसन है। आसन कोई भी हो मेरुदण्ड मस्तक एवं ग्रीवा की सीधा अवश्य रखना चाहिए । कम-से-कम तीन घण्टे तक एक आसन से सुखपूर्वक बैठने परःही आसन सिद्धि होती है। आसन कई हैं पर सिद्धासन पदुमासन एवं स्वस्तिकासन ही उपयोगी कहे गये हैं। प्रभाव- आसनों की सिद्धि से सर्दी गर्मी वर्षा आदि द्वन्द्ध बाधा नहीं पहुँचाते हैं । 4. पाणायाम प्राणों को किसी विशेष विधि द्वारा अन्दर ले जाने भीतर रोकने एवं बाहर निकालने की क्रिया है । अर्थात्‌ प्राणों के नियमन को ही प्राणायाम कहते हैं | प्रभाव-हमारे विवेक को आवृत्त करने वाले पाप और अज्ञान का क्षय प्राणायाम के द्वारा होता है। इससे मन एकाग्र हो जाता है। 5. प्रत्याहार हमारी इन्द्रियी अपने-अपने विषयों का सेवन करती रहती हैं । जैसे आँखे रूप का हाथ स्पर्श का नाक गंध का जीभ स्वाद का कान ध्वनि का सेवन करती रहती हैं । परन्तु जब ये इन्द्रियाँ अपने-अपने विषयों के संग से अलग हो जाती हैं तो ये चित्त-रूप में अवस्थित हो जाती हैं । इसे प्रत्याहार कहते हैं । प्रभाव- इन्द्रियों पर पूर्ण अधिकार | 6. घारणा मन में अपार शक्ति होती है | इन्हीं शक्तियों के उपयोग के द्वारा मनुष्य इच्छित वस्तुओं को प्राप्त कर सकता हैं । परन्तु एकाग्रता की कमी के कारण ही हम अनेक सुख-सुविधाओं से वंचित रह जाते हैं । धारणा का अर्थ होता है- उुउ




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