हिंदी निबंधकार | Hindi Nibandhkaar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हूं की प्रतिष्ठा ७ है--यह तो है उसका बाह्म व्यक्तित्व । भ्रपने विद्वासों के प्रति हमारा समर्थन ग्रास्थाद्रों के प्रति हमारी श्रद्धा विचारों के प्रति श्रभिभूत-भावना श्रौर सन्देश के प्रति हमारा अनुकरण पाने के परिमाण के अनुपात से ही उसका श्रान्तरिक व्यक्तित्व नापा जायगा । प्रस्तर श्रौर बाहर के दोनों रूपों को मिलाकर उसका व्यक्ति निर्मित होगा। यह जितना भी सशक्त श्र महान होगा उतना ही श्रमिट प्रभाव श्रपने पाठक पर छोड़ेगा । बाह्य व्यक्ति भ्रत्तर के व्यक्ति से ही निर्मित होता है । यदि श्रन्तर का व्यक्ति सबल सचेष्ट श्रौर महान नहीं तो बाह्य व्यक्ति केवल भाषा की खिलवाड़ प्रलंकारों का श्राउम्बर श्रौर भावों का छिछलापन ही दे सकेगा । भीतरी संवेदना जितनी गहन श्रनुभूतियाँ जितनी तीखी विचार-संघष जितना सक्रिय श्र दृष्टि जितनी सुक्ष्म श्र चुभीली होगी बाह्य व्यक्तित्व भी उतना ही स्पष्ट श्राकार ग्रहण करेगा । व्यक्तित्व के प्रारों की परख होती हूं सामाजिक श्र साहित्यिक परम्पराश्रों के विरुद्ध खड़ा होने में । जो निबन्धकार पुरानी श्रास्थाश्नों को जितना भी दृढ़ता के साथ ललकारे श्रपनी मानसिक प्रतिक्रिया को जितना भी सफल रूप में रखे उसका व्यवितित्व उतना ही चंमकेगा । व्यक्तित्व निर्माण में विश्वास संस्कार तात्कालिक वातावरण तो सक्रिय रहते ही हैं सबसे बड़ा हाथ हैं व्यक्तित्व के विकास में जीवन-संघर्ष का । प्राचीन और नवीन के बीच जब श्रस्तित्व के लिए प्रयास होता है एक सजग लेखक के मन में फल- स्वरूप तीव्र प्रतिक्रिया जागती हूं । यह मानसिक श्रौर भौतिक प्रतिक्रिया लेखक का नवीन व्यक्तित्व निर्माण करने में बड़ा काम करती है । मनुष्य के चिन्तनक्षेत्र में उथल-पुथल मचती है । भौतिक अस्तित्व के लिए भी मनुष्य को बड़ा संघर्ष करना पड़ता है । इस हलचल में ही लेखक श्रपने निजी विद्वास विचार श्रौर समेटता है। इन्हीं को वह निभंयता से श्रपनी रचना में प्रकट करता हूं । यही उसका व्यक्तित्व है । निबन्ध व्यक्तिगत प्रयास या साधन होने से इसमें व्यक्तित्व का प्रयोजन भी है श्रौर उसकी श्रपेक्षा भी । इसलिए व्यक्तित्व निबन्ध में उभरता भी हैं श्र व्यवितित्वप्रधान लेखक ही निबस्थ को जन्म दे सकते हैं ।




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