चमत्कारचिन्तामणिः | chamatkarachintamani
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.61 MB
कुल पष्ठ :
64
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand).......' भाषाटीकासहित। ' डे
योवनादेः शंरीरे सुख चंन्द्व॑त्साहसं च॥ ६. ॥
झन्दयः--यस्य जनस्य तारकेशः तपो भावगः ते घजाः
-द्विजाः बन्दिनः: च स्तुवन्ति, यौबनादेः -भाग्याधिकः भवनि--
, एवं शरीरे सुख चन्द्रवत्त साहसं च ( भवति ) ॥ & ॥ '
अथ--उजिस पुरुष के नवम स्थान में चन्द्रमा रहता है,
उसकी -स्तुःति प्रजा घोहमाण श्रौर चंदी शोग करते हैं । ये वन
आदि होने से वह भाग्यवांद होता ही है। उसे शरीर खुख
पूरे मिलता है। घह चन्द्रमा के समान साहसी होता हैं ॥ &॥
सुख वान्धवेग्य' खगे पंमंकर्मा समद्राजजे शं
नरेशादितोर्थपे ॥. नवीनाइनाविमवे सेप्रियंतें
पुरो जातके .सोख्यमव्थं -करोति १० ॥।
झन्वयः--समुद्राइजेखगे [ स्थिते | घ्मकर्मा बान्घवे म्य
दुख . नऐशादितः , झपि शं न्नीनांयन'बैभने सुप्रियत्वे [च
लभते ] पुरो जातकं 'झतपं सोख्यं करोति #.१०॥
झये--जिसं पुरुष के दृशम सूंयान में चन्द्रमा रहता हे
तह बड़ा धर्मात्मां होतां है - उसे झपने भाई यंघुश्सि सुख
येता है, र[जा श्रौर धनिकों से थी कल्याण होता हैं, नवीन
घी और चिभव्र पाता है, श्ौर सदा ही प्रिय समाचार उसे
बेर रहते हैं । 'परंतु प्रथम सुंतति से डसे बहुत, स्वल्य रख
पता है | १० ॥
लमेद्भूमिपादिन्दनां लाभगेन अतिष्ठाँधिका-
म्वराशि क्रमेण ॥ श्रियोश्थ ख़ियोन्तः .पुरे
वेश्रमन्ति क्रिया वेकृती कन्यका वंस्तुलाभगां११॥।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...