चमत्कारचिन्तामणिः | chamatkarachintamani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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.......' भाषाटीकासहित। ' डे योवनादेः शंरीरे सुख चंन्द्व॑त्साहसं च॥ ६. ॥ झन्दयः--यस्य जनस्य तारकेशः तपो भावगः ते घजाः -द्विजाः बन्दिनः: च स्तुवन्ति, यौबनादेः -भाग्याधिकः भवनि-- , एवं शरीरे सुख चन्द्रवत्त साहसं च ( भवति ) ॥ & ॥ ' अथ--उजिस पुरुष के नवम स्थान में चन्द्रमा रहता है, उसकी -स्तुःति प्रजा घोहमाण श्रौर चंदी शोग करते हैं । ये वन आदि होने से वह भाग्यवांद होता ही है। उसे शरीर खुख पूरे मिलता है। घह चन्द्रमा के समान साहसी होता हैं ॥ &॥ सुख वान्धवेग्य' खगे पंमंकर्मा समद्राजजे शं नरेशादितोर्थपे ॥. नवीनाइनाविमवे सेप्रियंतें पुरो जातके .सोख्यमव्थं -करोति १० ॥। झन्वयः--समुद्राइजेखगे [ स्थिते | घ्मकर्मा बान्घवे म्य दुख . नऐशादितः , झपि शं न्नीनांयन'बैभने सुप्रियत्वे [च लभते ] पुरो जातकं 'झतपं सोख्यं करोति #.१०॥ झये--जिसं पुरुष के दृशम सूंयान में चन्द्रमा रहता हे तह बड़ा धर्मात्मां होतां है - उसे झपने भाई यंघुश्सि सुख येता है, र[जा श्रौर धनिकों से थी कल्याण होता हैं, नवीन घी और चिभव्र पाता है, श्ौर सदा ही प्रिय समाचार उसे बेर रहते हैं । 'परंतु प्रथम सुंतति से डसे बहुत, स्वल्य रख पता है | १० ॥ लमेद्भूमिपादिन्दनां लाभगेन अतिष्ठाँधिका- म्वराशि क्रमेण ॥ श्रियोश्थ ख़ियोन्तः .पुरे वेश्रमन्ति क्रिया वेकृती कन्यका वंस्तुलाभगां११॥।




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