प्राकृत और अपभ्रंश साहित्य | Prakrit Aur Apbhransh Sahitya

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Prakrit Aur Apbhransh Sahitya by राम सिंह तोमर - Ram Singh Tomar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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_ प्राकृत साहित्य ५ परंपरा के अनुसार उसका अध्ययन यहाँ आवश्यक नहीं समझा गया । और प्रतीत ऐसा होता है कि हिन्दी साहित्य से वह बहुत दूर पड़ता है उसका कदाचित्‌ ही कोई प्रभाव पड़ा हो इससे भी उसे छोड़ दिया गया है । इसी प्रकार धार्मिक जैनागमों और जन शौरसेनी का भी अध्ययन आवश्यक नहीं प्रतीत हुआ । उसे भी छोड़ दिया गया है। जेन प्राकृत-साहित्य का अध्ययन आव- इंयक समझा गया है क्योंकि जैन अपभ्म शा-साहित्य और जैन प्राकृत-साहित्य में विषय-विवेचन दौली और भावधारा की दृष्टि से कोई अंतर नहीं है । पाली साहित्य और जैन धार्मिक कृतियों की अनेक प्रकार की टीकाओं में जो सनोरम कथा-साहित्य मिलता है तथा अन्य अनेक साहित्यिक विशेषताएँ सिलती हैं उनका अवश्य ही समस्त भारतीय साहित्य पर प्रभाव पड़ा होगा । भाषा संस्कृति धर्म इतिहास की दृष्टि से इस साहित्य का मूल्य बहुत ही अधिक है । प्रस्तुत ग्रंथ में केवल साहित्यिक प्राकृत-साहित्य का ही अध्ययन प्रस्तुत किया गया है । जन प्राकृत साहित्य जन संप्रदाय की सबसे बड़ी विशेषता रही है कि साहित्य रचना की. धारा को उसने कभी भी मंद नहीं होने दिया । प्राकृत संस्कृत अपभ् श लोकभाषाएँ सभी में जैन रचनाएं मिछती हैं । दिगम्बर और द्वेताम्बर दोनों ही जैन संप्रदायों द्वारा प्राकृत में साहित्य लिखा गया है । दिगम्बर सम्प्रदाय के आचार्यों ने शौरसेनी प्राकृत में लिखा है. नर सिविल । पुराण दाली में ग्रथित इस कृति में ११८ उद्देश अध्याय हैं। समस्त कृति का विस्तार ९००० पद्यों से भी अधिक है । प्रचलित राम कथा के सम्बन्ध श्रेशिक राज की अनेक दकाओं का समाधान करने के छिए गौतम गणधर ने नकल न पलक. यहू कथा कही है। प्रसिद्ध राम कथा के सभी प्रमुख पात्र इसमें मिलते हैं प्रधान पात्र सभी जन धम में दीक्षित दिखाए गए हैं और अनेक स्थलों पर सानवीकरण १. विद्वानों ने इन प्राकृतों को जिन शौरसेनी तथा जैन सहाराष्ट्री कहा है सामान्य प्राकृत से कुछ भेद इन प्राकृतों में मिलता है । दे० पीशेल ग्रामा- टिक० अनु० १६ २० ९२१ ।॥ २. डा० हेरमान्न याकोबी द्वारा संपादित जैन धर्म प्रसारक सभा भावनगर से प्रकादित १९१४ ई०




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