स्मृति - सन्दर्भ प्रथम भाग | The Smriti Sandarbh vol-i

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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_... मनुने गर्भाधान संस्कार से विवा! विज्ञान, रसायन आदि भिसन-भिन्‍त काल से भिस्तनशिन्‍न विद्वानों के उद्गार भिन्न-भिन्न दष्टिकोण से हैं परन्तु धर्मशास्त्र की मर्यादा एक है। देशकाल भेद से जो तारतम्य होता है उसका स्पष्टीकरण वहीं किया गया है । स्मतिग्रन्थों में सत्य, त्रेता, द्वापर और कलियुग इन चार युगों में तपस्या, ज्ञान, यज्ञ और दान इनको युग के अनुरूप प्राथमिकता दी गई है । इससे यह अथ न समझना कि. सत्ययुग में दान नहीं था और कलियुग में तप नहीं है। सब युगों में तप, यज्ञ ज्ञान और दान की महिमा है केवल किस युग में किस धर्म की प्रधानता है यह इसका तात्पय है घर्मशास्त्रों में विधि वावय, नियम वाक्य, परिसंख्या और अ्थवाद वाक्यों की परिभाषा की जानकारी कर तब ठीक-ठीक तात्पयं बुद्धि में आवेगा, अन्यथा कहीं विरोधाभास प्रतीत होने से भ्रम हो जाएगा । विधि वाक्य और नियम वाक्यों में जो बताया गया है उसका पालन न करने से शास्त्रीय दण्ड या प्रायध्चित का भागी होता है। स्मति ग्रन्थों का मौलिक रचनाक्रम और धर्मशास्त्रीय व्यवस्था संस्कार परिज्ञान धर्मपु्वेक व्यवहार शासक के गुण प्रायः सब स्मृतियों में समान ही हैं । परन्तु किसी स्मृतिकार ने किसी बात को अधिक महत्व दिया है सृष्टिरचनाक्रम वर्णन करके मनु ने आचार संस्कार का वर्णन .. किया है । उन्होंने जिन आचार व्यवह नी स्मृति में . बताया है उसके लिए कहा गया है 'यह सब वेद वाक्य है' यथा-- 'यस्मनुरबदत्तद्भेषजं भेषजानाम्‌ मनुस्मृति के द्वितीय अध्याय में आया है धर्म बताया गया है बहू सब बेदों में है । यहाँ यह है कि महर्षि मनु के ये विचार हैं जिन्हें महर्षि ... मनुस्मृति में ध्यान रखने की बात . भूगुजी ने निबन्धी कृत




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