एक जीनियस की प्रेम कथा | Ek Genius Ki Premkatha
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.05 MB
कुल पष्ठ :
140
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about भैरव प्रसाद गुप्त - bhairav prasad gupt
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)__चढ़ा दो,” अपनी देह की साडी खोलते हुए कुसुम ने वहा
था।
--तो हो. राजेश ने आखें झुकाकर वहा था--मेरी एव बात
पर विश्वास कर लो । ड
--वह तो कर चुवी हूँ.--पेट्रीकाट वदलते हुए कुसुम ने कहा
था।
और भी नाखें झुवाकर राजिश ने कहा था-- बह बात तो अब
रद हो गयी न, कुसुम । माजी को तो रात को ही भेज रहा हूं ।
--अच्छा, तो अब दूसरी वात कौन आ गयी ? कुसुम ने
ब्लाउज उतारते हुए कहा था।
राजेश ने युकी हुई आखो की वद करते हुए कहां था--मैँ वडा
थक गया हूँ । माजी को छोड रात मे ही जाना पडंगा । लगता है. कि
जो वक्त हु, उसमे थोडा आराम न कर लिया, तो बीमार पड़
जाऊँगा।. कुसुम, तुम थोडे रुपये दं दो । बल जरूर-ज़रुर तुम्हे
वही से लाकर दे दूमा ।
-मभी हो तुम रुपये लेने चल रह थे,--शरीर पर थी बॉडी
का काटा खालते हुए कुसुम ने कहा था--मैं कपडे वदल रही हूँ ।
दूसरी ओर मुह फेरकर राजेश ने वहा था--तुम कपडे बदल लो,
बुसुम । कही टहल आएंगे । लेकिन पसे
-मसे तुम कल ज़रूर लौटा दोगे न ?--वॉडी उतारत हुए
कुसुम ने पूछा था ।
“यरूर जरूर, कुसुम । राजेश ने कहा था--वम से कम पैसे
के मामले मे ती मैंने तुम्ह कभी शिकायत का मौका नहीं दिया हम !
“तो ठीक है, मैं पस दे दूंगी,--दूसरी बॉडी पहनत हुए बुसुम
ने बहा था--उठी, तुम कपड़े बदल लो
एठुम बदल लो, ढुसुम,--राजेश न सूखत हुए गले से कहा
था--मुये जरा हाथ मुह घोना हू।
_. फहकर शजेश औसारे वो ओर के दरवाजि से न निकलकर बैठक
से हादर औसारे में निवला था | सारे वी ओर ने दरवाजे क॑ पास
एक जीनियस वी प्रेमकथा / 15
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