विवाह कुसुम | Vivah Kusum
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
69.38 MB
कुल पष्ठ :
173
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about चारुचंद्र वन्धोपाध्याय - Charuchndra Vandopadhyay
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)|
[ &
जाते हैं। रमा का हृदय भी अपने जीवन सवेस्व से मिलने के
लिए व्यग्र हो उठता है। वह कमरे में जाती है, देखती है
हीरक अपने प्राप्त किये हुये मेडलों की माला बना रहा हे ।
वह उसके कन्घे पर भार देकर खड़ी हो जाती हे | होरक
झपने मेडलो की माला उनके गले में डाल देता है। दोनों के
मुख प्रेमाचेश से उज्वल हो जाते हैं।
इतने ही में हीरक को झपना कतंव्य स्मरण हो ता है !
यदि श्राज ही रातको या कलही प्रातःकाल कोई उचित प्रबंध:
न डुझा तो “पाथर गोला” ग्राम के बह जाने का भय है । वह
पक दम चौंक उठता हे; प्रेम कतंब्य में बदल जाता है। कहता
है “रमा झाज रात भर के लिये मुझे छुट्टी दो ।”
बिलकुल ठीक है । वास्तविक प्रेम इसी का नाम है । बह
प्रेम जो क्तेंब्यज्ञान से शूल्य होता है। वह प्रेम तो लालसा से
परिपूर्ण होता है; वह प्रेम तो झपने खुख के सिवाय दूसरे की
परवाह नहीं करता, बह प्रेम तो कतेव्य से डरता हे, उपकार
से घृणा करता है, अन्याय को गले लंगाता है । सच्चा प्रेम नहीं
है । वह मोह का एक उद्दांम उच्छास है, जो मनुष्य को पिशाच
बना देता है। वास्तविक प्रेम वही है जो कंतेव्यज्ञान से भय
_ नहीं खाता; बलिक उसे गले लगाता है, इसके सदुल स्पर्श से
लालसा भी चमक उठती है, वीभत्स काम भी सुन्दर हो जाता
है।इस प्रेम के सम्मुख भक्ति घुटने टेककर प्रणाम करती है,.
.. विश्वास इसके खिरपर पविऋता का मुकुरमणिडित करता है ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...