कालिदास | Kalidas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| परिच्छेद छ बात का उन लेखों में कही भी जिक्र नहीं श्राया है । इसके झतिरिक्त एक बात यह भी है कि इसा से पूर्व प्रथम शत्ता दी मैं यदि विक्रमा दिव्य॑ नामघारी कोइ व्याक्ति होता जो इस सबत्‌ का भी प्रवर्तक होता तो उसका नाम शीघ्र ही उससे सम्बद्ध हो गया होता पर बस्तास्थिति कुछ श्रौर ही है । विक्रमकाल इस सामासिक पद का उपयोग एक खास सबत्‌ के द्रर्थ मैं पहले पहल इंसा की नवम शताब्दी में अरयुक्त हुश्ना देख पड़ता है । श्र इस विक्रम पद से बिक्रमादित्य का ही मतलब निकलता है इसमें इमें शका है । श्रामितगति के सुमाषित-रत्न सदोहद मैं जो विक्रम सबत्‌ १०४० में लिखा गया था विक्रम शब्द विक्रमादित्य राजा के श्र में पहले पहल नि सन्देह रूप से प्रयुक्त हुश्रा है प्रोफेसर कीलहॉर्न ने यह श्रनुमान निकाला है कि इस सबत्‌ को किसी विक्रमादित्य ने शुरू नहीं किया बल्कि उसका नाम धीरे धीरे इस सबत्‌ से सम्बद्ध हो गया। इसका कारण यह है कि जैसे शाल्ति वाहन शक का चैत्र मास में श्रारम्म होता है उसी प्रकार विक्रम सबत्‌ का झ्ारम्भ शरद ऋतु श्रर्थात्‌ कार्तिक मास में होता था। इस ऋतु में राजा छोग युद्ध के लिए प्रस्थान करते थे इस कारण उस ऋतु को विक्रम काल का नाम दिया गया । इस श्रर्थ में हर्षचरित श्रादि झ्नेक म्रथों में विक्रम श द का प्रयोग किया गया है। शरद ऋतु में श्रारम होना ही विक्रम सबत्‌ की एक विशेषता दो गयी । उसी को लोग विक्रम-काल कहने लगे। आगे इस सामासिक शब्द का ठीक अथ समभकरमें न आने से लोग उस शब्द का विक्रमादित्य ने चलाया हुग्रा सबत्‌ इस श्रर्थ मैं उपयोग करने लगे । इस तरह विक्रमादित्य का नाम धीरे धीरे प्रचलित संवत्सर के साथ जुड़ गया । दूसरे विद्वानों के मत में यह सबत्‌ मालव देश मैं बहुत वर्षों तक प्रचलित रहा श्रौर उस प्रात में चौथी शत दी में प्रसिद्ध पराक्रमी दानशूर महाराज




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