हिंदी - शब्दसागर सं.२९ | Hindi Sabdhsagar No 29
लेखक :
भगवानदीन - Bhagawanadeen,
रामचंद्र शुक्ल - Ramchandra Shukla,
रामचन्द्र वर्मा - Ramchandra Verma,
श्यामसुंदर दास - Shyam Sundar Das
रामचंद्र शुक्ल - Ramchandra Shukla,
रामचन्द्र वर्मा - Ramchandra Verma,
श्यामसुंदर दास - Shyam Sundar Das
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज़ :
712.05 MB
कुल पृष्ठ :
570
श्रेणी :
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भगवानदीन - Bhagawanadeen
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रामचंद्र शुक्ल - Ramchandra Shukla
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रामचन्द्र वर्मा - Ramchandra Verma
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श्यामसुंदर दास - Shyam Sundar Das
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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की दि फेरदर _... थी और इसे दुर्गा जी मे मारा था । सार्कडेय पुराण में न _... क्रम से लघु और गुरु आते.
न सकी सावस्तर कथा लिखी है । मेक *
सहिषी-संज्ञा खी० [ सं० ] (१) मैंस । (२) रानी, विशेषतः पट-कि
रानी । (ड.) सैरिश्री । (४) एक ओषधि का नाम । महीघ्रक संज्ञा पुं० [ सं+ 1 (33 सहीघ्र । (२१ एक राजा कासहिषीकंद-संज्ञा पुं० [ सं० ] एक अकार का कंद जिसे मैंसा नास |
कद भा कहते है । । हि महीन “बिं० | सं+ महा + मीन ( सं८ कीण!' | की है, जिसकी मोटाई
महिचीप्रिया-संज्ञापपुं० [ सं० ] झूली नामक घास या घेरा बहुत ही कम हो । “सोटा” का उच्टा । पतला ।सूक्ष्म । जसे सहीन तागा, महीन तार, सहीन सुई जादि |कक(२) जिसके दोनों ओर के के बीच बहुत कम अंतर
| । जा बहुत कस मोटा हो । बारीक 1 झीना । पतला ।जस--महान कपड़ा, सहान काराज कहने छा | जुमहिषेश-सैज्ा पुं० [ सं० ] (१) सहिषासुर । उ०८--महासोह
1विद्ाला । राम कथा कॉलिका कराला ।-->सुल्सी
(२) यमराज । उ०--कह महिषेश वहाँ ठे जाओी ! चित्रगुपित्रे घाहि देखाओ ।---विश्रास ।कु चर, | 1 8दि दास समनाहर आनन बार को दीपिस जाकी दिपें सब दीवें |
हिघोत्सग-संज्ञा पु फ स० एक अकार को ये । श्रौन कि विराजि र था यत साहि की ले
[ सं० ] बहुत बड़ा सु है सुकुताइल सं दे समीप ।.सारी महीन सी. छीन विछोकि विचारत हैं कवि के अब-
नीपें । सोदर जानि ससीही मिली सुत्त संग लिए. मनों
सिंधु की सीपें ।--मनोहरदास
सुद्दा०-महदान काम न वह काम जिसके करने में बहुत साब-
घानी ओर आँख गड़ाने की आवश्यकता पड़ती हो । जैसे...
सीना, चित्रकारी, सूची कर्म आदि । गएर-संज्ञा पुं० दे० “समहीसुर” दगे.. मही-संज्ञा खी० [ सं० 1(१) प्रथ्वी । (२५ सिट्टी (३१५ अवकादा
देश, । स्थान । (४) नदी । (५) क्षेत्र का आधार । (६)
सेना । (७) झुड । समूह । (८) एक की संख्या । (९)
गाय । (3०) हुरहुर । हुलहुर । (११) एक छंद का नाम
. जिसमें एक छथु और एक शुरु मात्रा. होती है । लैसे---ऊच ५, गा तल हररगी, नदी इत्यादि की दे) जो बहुत कम, 1 या तेज हो। कोसल |
आस पा हद थ' स्ः पुसंज्ञा पुं० [ हिं० महना ] महा । छाछ । उ०--(क) तु मा। मंद ( इस जय में यह दाव्द प्रायः दाब्द वा स्वर केलिए ही आता है 9 ।
संज्ञा पुं० [ सं» ] राजा । दर डक
महू था पु प् स० मास वा मा: मिं० पा८ मांहिं है ( न] चुकासुादत दूत भया सानहू आमय लाह मॉगत सही --तुखूसी ।
छाडि कनक मणि रत अमोलक काँच की किरच गही ।
ऐसी तू है. चतुर विचेकी पय तजि पियत सही ।--सूर ।; (ग) घ दो माखन सही बे नहीं मझ | एसी का एक पारसाण जा बच के बारहव अदा के बराबर होता है । गा
चोरी करतु हैं फिरतु भोर अर साँस 1<- कुचल कु यह साधारणतथा तास दिन का होता है; पर को कोई...महीने इससे अधिक और न्यून भी होते हैं। आाजकल भारत-चष में प्रकार के महीने हैं>“देशी, अरबी औरअंग्रेजों । देशी वा हिंदी महीने चार प्रकार के होते हैं, सौर
मास, चद् सास, नक्षत्र सास ओर सावन मास (विवरण के .
'छिये देखो “सास”) अरबी महीना एक का चंद स ्स
_ है जो झुक द्वितीया से होता है । अँग्रेजी सहीना
सार मास का एक भेद है जिसमें संक्रांति से महीना न टी
. बदलता, कितु अत्येक महीने के दिन नियत होते हैं। जोकार, अचालत वा. चांद बच में, उसे सौर वर्ष के बराबरमहीकित-संक्ञा पुं० [ सं० ] राजा रा
.. मददीखड़ी-संज्ञा खी० [ देश० ] सिकलीगरों का. एक. औौजार जे
जिसकी धार कुंद होती है और जिसमें लकड़ी का दस्ता
छगा रहता है । इससे बतेन आदि खुरचकर साफ किए |.
डर जाते हैं और उन पर जिला की जाती है । कक
मंदीज-संज्ञा पुं० [ सं० | (१) अदरक । आदी । (२) मंगल ग्रह ।यह इतरा. नामक दासी के युन्न थे । .... करने के लिये जोड़ा जाता है, उसे लौंद कहते हैं; और
यदि यह काठ एक महीने का होता है, तो उसे; ढौंद का.है
कु. महीना था मल मास कहते हैं ( देखो “मल मास है
.... देशी वर्षों सें अति तीसरे वर्ष सछ मास होता है. और उससमसम
४ कीसमय बष मे बारह महीने न होकर तेरह महीने. होसे हैं।+. वर्षो में अति चौथे बे लौंद का एक दिन अधिक..... बढ़ाया जाता है; पर अरबी सहीनों के वर्षों में सौर ब्ष से
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