ध्रुपद - स्वरलिपि | Dhrupad Swarlipi

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Dhrupad Swarlipi by श्री हरिनारायण - Shree Harinarayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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।। सरगमप सरगमपधघसरगमपधन ग्राइव घाड़व ...... पाड़व पाड़व सम्पूो षाड़व सरगमधघ सरगसमपन ्ड० ३० रद सरगमन सरगपधन आडव सम्पूणा.. पाड़व सम्पूर्ण सम्पूर्ण सरगपध सरमपधन श्पर ् द्ू सरगपन सगमपथधन सरगधघधन सरगमधन सर मसपथध सरमपन सरमधन सरपधन सगसपथध सगमपन सरगमधन सगपथधन समपधन र _ १५ ब्राइव मेलों में पहला तीसरा छठा दसवाँ श्रौर पन्‍्द्रहववाँ मेल के विचार करने से देखा जाता है कि लगातार दे स्वर वर्जित होने के कारण बहुत-सी श्रुतियों का अभाव होता है श्रौर इस अवस्था में राग बनाने से कर्ण कट हो जाता है । कदाचित्‌ मिश्र रागों में इनका व्यवहार में लाने से क्श प्रिय हो सकते हैं बाकी. दस ओडइव रागें में कुछ प्रचलित हैं सेसे चाथा मूपाल विभाष पाँचवाँ हंसध्वनि आटठवाँ सारंग नवाँ पुलि- न्दिका बारहवाँ मालश्री ग्यारहवाँ हिंडोल सालकोष २--तीसरा देशकार छठा पुरिया मारूवा साहिनी चाथा गोड़ मेघ ३--देखिए रागमेला _... मित्र रागों में बहुत हो सकते हैं उनमें से कुछ प्रचलित हैं । झाड़व षाइ़व स र मा प न ना ध पमसा रस. सुरट झडव सम्पर्थ स र मा प न नाध पमसागरस. देश पु स र मा प ना ना धा प मा गा रा स. अआसावरी बाड़व सम्पूर्ण स रगमप न न धघप सग रस श्याम न धप समागरस . मबेहामग




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