काय - चिकित्सा भाग 4 | Kaay - Chikitsa Vol. - Iv
श्रेणी : स्वास्थ्य / Health
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11.47 MB
कुल पष्ठ :
306
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)॥ श्री ॥
काथ-चिकित्सा
ननन्ान्लयलननन
प्रथम अध्याय
पथ्चकर्म और उनकी परिभाषा
निर्वचन
१ वमन, २ विरेचन, ३ अनुवासन, ४ निरूदह और ५ नस्य- इन पाँचों
कर्मों को पथ्चकर्म कहते है” । इसी अनुक्रम से उनका प्रयोग करना श्रेयस्कर हे ।
आयुर्वेद की. प्रतिप्ठा, सम्मान और गौरव कार्याचकित्सा अद्भ से है उव
कायचिकित्सा द्वारा चिकित्स्य रोगों के उपचार में पश्चकर्म-पद्धटति का महत्वपूर्ण
स्थान है ।
पथ्चकर्म शब्द दो शब्दों से बना है--पथ्च + कम । पश्च शब्द सख्यावाचक है
गौर मज़ुलाथेक है । आयुर्वेद मे पश्च शब्द का प्रयोग अनेक स्थलों पर किया गया
है, जसे--पचमहाभूत, पथ्चमूल, पश्चकोल, पथ्च क्षी रीवृक्ष इत्यादि ।
कर्म -'क्रियते इतति कर्म' अर्थात् जो क्रिया की जाती है, उसे कर्म कहते
ह। कम, क्रिया, कार्य का आरम्भ -सये समानार्थक शब्द हैं। यहाँ कर्म का अर्थ
चिकित्सा है। कर्ता के अभीप्ट कार्य को कर्म कहते है 15 द्रव्य के काये को उस
द्रव्य का कमें कहते हे ।
पथ्चक्म सशोधन-चिकित्सा का एक प्रकार हे, जिसका प्रयोग स्वस्थवृत्त*
१ (कक) प्रयम वमन पश्चाद, विरेकश्वानुवासनम् ।
एतानि पश्नकमांणि निरूद्दी नावन तथा ॥ -भा० प्र० पू० ख०
(स)वमन रेचलन नस्य निरूदृश्वानुवासनम् ।
एनानि पश्टकर्माणि कंथितानि सुनीश्वर ॥ -शा० उ० ८1७०
» प्रवृत्तिस्तु खढ़ चेष्टा कार्याथा, सेव क्रिया, कम, यत्न. का्यसमारम्भश्य ।
-ु्च० वि० ८।७७
₹. 'कतुरीप्सिततमं कम” ( पाणिनिसूत्र १४1४९ ) 'कतुं क्रियया भाप्तुमिध्तम कारक कर्मसंक
स्यात्” । तथा 'प्रयत्नादि कमं चेष्टितमुच्यते” । --च० सू० र/४९
४, द्रन्याणि हि द्रव्यप्रभावात् गुणप्रभावात द्रन्यगुणप्रभावाव्च त्तस्मिन तस्मिन् काले तत्तद-
पिष्टानमासाद्य ता ता युक्तिमर्थ च तमसिप्रेत्य यत् कुबन्ति तद् कर्म । --घ० सू० २६१३
५ दैमन्तिक दोपचय वसन्ते प्रवाइयन् औेष्मजमश्रकाठें ।
घनात्यये वार्षिकमाशु सम्यकू प्राप्नोति रोगाचूतुजाज्ञ जादु ॥ -च० झा० रा४५
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