चौहान कुल-कल्पद्रुम खंड 1 | Chouhan Kul-kalpadruma Part I

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Chouhan Kul-kalpadruma Part I by लालु भाई भीम भाई देसाई - Lallubhai Bhimbhai Desai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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॥ श्री सारणेखरणी ॥ श्री गणेदापनमः चौहान कुछ कलपट्रेम भूमिका, _. राजपु्रों के छत्तोप्त राज झुलों में चौहान वंश के राजपूतों : ने स्वाभिमान और नेक टेक का सम्पूर्ण रक्षण करके भारतभूमि के इतिहास में 'अगस्थान प्राप्त करने में बड़ी नामवरी पाई है ऐसा सर्वाजुमते स्वीकार हुआ है, और यह प्राचीन व गोरवशाठो चंदा के नामांकित राजपुत्रों को प्रशंसा के वास्ते हरएक भाषा में पूर्व काल से ही अनेक काव्य ग्रंथ रचे हुऐ है; वेसे विद्वान कवियों ने भी अनेक गीत क्रित्त रचकर इस कुछ के इतिहास का रक्षण करने में अपना हिस्सा दिया है.. ऐसे व प्रभाव- शाली राजकुछ की सच्ची और सप्रमाण ख्यात हरएक शाखा के सिललिठेवार वंशदक्ष के साथ प्रसिद्ध करने की गरज से इस के लेखक ने प्राचीन शिलालेख, ताश्रपत्र, अप्रसिद् हस्तलिखित काव्य और ख्यातें, विद्वान कवियों ने रचे हुए ऐतिहासिक गीत कवित, तथा प्रसिद्धि में आये हुए हस्तछिखित व छपी हुई ऐतिहासिक पुस्तकों में से चौहान राजपूतों से ताछुक रखने वाठी ख्यात को एकत्र करके इस कुछ के राजपूतों के वडुए, कुलयुरू, राणीमगा व पुरोहित आदि की पुरानी बह्दीओं से जरूरी सहायता लेकर यह “ चौहान कुछ कह्पट्रूम ” नामक ग्रंथ रचा है, जिसमें मूऊ पुरुष * चाहमान ' से शुरूआत करके वर्तमान समय तक का इतिहास अंकित है. चस्तुतः ' चाहमान ' नामक बडा प्रतापी पुरूष के नाम से ' चोहान वंश ' कहठाया है, परन्ठु पीछे से इस वंश की २४ चौवीस शाखा होना कहावत से व प्राचीन हस्तछिखित पुस्तकों से भो प्रसिद्ध, है. जो शाखाएं चौहानों का सांभर में राजस्थान होने बाद विभक्त हुई हैं, जिनमें कितनीक शाख्राएं सांभर से व कितनीक शाखा विक्रम संबत्‌ की ग्यारहवीं सदी में नाडोल से नीकठो है, छेकिन उनमें कौन २ शाखा सांभर से व नाडोल से विभक्त हुईं वह वित्राद अस्त होने से. चौहानों की प्राचीन शाखा के विषय में एक स्वतंत्र प्रकरण ( तीसरा प्रकरण ) लिखा गया हे, उससे सादूम होगा कि अलग २ शाखा की ख्यातो में अंकित हुई प्राचीन चौबीस शाखाओं को एकत्र करके जांच करने से उनमें वहुतसी उपशाखाएं हो 'ूकी हे, जिससे चौहानों की चौबीस कहाती शाखा की संख्या सैंकड़ों के अंक पर जा पहुंची हे. जो कि चौहान कुछ के




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