स्वदेश - विदेश - यात्रा | Swdesh - Videsh - Yatra

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Swdesh - Videsh - Yatra  by श्री सन्तराम - Shri Santram

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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० स्वदेश-विदेश-यात्रा अनन्त नाग से जो सड़क श्रीनगर का गई है, उसके समान सुन्दर दूसरी कोई सड़क संसार में मिलनी कठिन है । इसके दोनों ओर गगन-स्पर्शी सफेद (पापलर) के ब््त सुव्यवस्थित रूप से पंक्ति-बद्ध. खड़े हैं । इनके सफ़ेद तने और हरी-भरी चोटियाँ बड़ा ही मनोहर दृश्य उपस्थित करती हैं। ऊपर स्वच्छ नीलांकाश है और नीचे. धघूलि-रहित निर्मल समतल भूमि । ऐसा अलौकिक दृश्य देखकर. ब्यात्मा दूप्त हो जाती है । सफ़ेदों की यह सड़क श्रीनगर से भी ३५, मील परे बारामूला तक इसी प्रकार चली गई है । अनन्त नाग से कोई एक मील आगे 'खनबल' नाम का स्थान है । यहाँ काश्मीर-नरेश का विश्नान्ति-गृह है । इसके बाहर एक पढ़ें पर सूचना लिखी हुई है--भोटर धीरे चलाइए, महाराज चिश्ाम: कर रहे हैं । अब हमारा माग जेहलम नदी के किनारे किनारे है । 'मनेक लोग यहाँ से नाव में बैठकर श्रीनगर जाते हैं । इसमें किराया तो कम परन्तु समय अधिक लगता है । साँक को नाव में बैठे तो दूसरे दिन सबेरे श्रीनगर पहुँचेंगे । अवन्तिपुर श्रीनगर से १६ मील दूर 'छवन्तिपुर के खेंडहर हैं। कु वप हुए इनकी खोदाई हुई है। खोदने से पुराने मन्दिर श्रौर मकान हर कै कक #९... ७५० कक निकले हैं। इस नगर को ९वीं शताब्दी में राजा श्वन्तिवर्मा न चसाया था ।




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