कृष्णार्जुन युद्ध नाटक | Krishnarjun Yuddha Natak
श्रेणी : नाटक/ Drama, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.36 MB
कुल पष्ठ :
113
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)1 दे
तुमे मेरी शपथ है, ज़रा चुप रद । मान-मनोझल का
नाटक तो होता ही रहेगा; झ्ाज उन्हें इस रंग-मंच
पर कुछ श्रोर दी दिखाऊँगी । वे नाटक-प्रिय हैं-
देख; अच्छा तो नाथ--
( सूचरघार का प्रवेश )
सु्रधार--प्रिये, इस समय देव में कैसी ?
टी--देव, गृह में इस समय केसे
सू०--में तुम्दें सब स्थानों में ढढ़ता फिरा,--यहाँ शाकर
मिली ही ।
न०--मालुम होता है हिमालय में ले ज्ञाकर वैराग्य ने साथ
छोड़ दिया
सू०--वैराग्य ! तुभे यह जानना चाहिए कि हिमालय में
हदरिणिय रहती हैं, मोर शपने पुच्छ-कलाप पर गवं
करते हैं, दिन में कमल खिलते हैं श्रौर रात्रि को
चन्द्रमा चमकता है, कोकिल बोलती है, हंस
खत हनन
न०--( कुछ लजा से ) श्रौर कुछ ?
सू०--मेरे हृदय में प्रीति बसतो है श्रौर स्सति में तुम्हारो
मूत्ति ।
न०--ढीक !
खू०--किम्तु, मैंने उस मसूत्ति का चित्र ्नौर ही रूप में खींच
रखा था । उसमें श्रस्तव्यसत वस्त्र परिघान कराये
थे, आभषणों का वहिष्कार कराया था, शओछ् की
लाली उड़ाई थी, मुख-चन्द्र को चीण तथा रुखे घन केशों
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