कृष्णार्जुन युद्ध नाटक | Krishnarjun Yuddha Natak

Krishnarjun Yuddha Natak by माखनलाल चतुर्वेद्दी - Makhanlal Chaturvedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1 दे तुमे मेरी शपथ है, ज़रा चुप रद । मान-मनोझल का नाटक तो होता ही रहेगा; झ्ाज उन्हें इस रंग-मंच पर कुछ श्रोर दी दिखाऊँगी । वे नाटक-प्रिय हैं- देख; अच्छा तो नाथ-- ( सूचरघार का प्रवेश ) सु्रधार--प्रिये, इस समय देव में कैसी ? टी--देव, गृह में इस समय केसे सू०--में तुम्दें सब स्थानों में ढढ़ता फिरा,--यहाँ शाकर मिली ही । न०--मालुम होता है हिमालय में ले ज्ञाकर वैराग्य ने साथ छोड़ दिया सू०--वैराग्य ! तुभे यह जानना चाहिए कि हिमालय में हदरिणिय रहती हैं, मोर शपने पुच्छ-कलाप पर गवं करते हैं, दिन में कमल खिलते हैं श्रौर रात्रि को चन्द्रमा चमकता है, कोकिल बोलती है, हंस खत हनन न०--( कुछ लजा से ) श्रौर कुछ ? सू०--मेरे हृदय में प्रीति बसतो है श्रौर स्सति में तुम्हारो मूत्ति । न०--ढीक ! खू०--किम्तु, मैंने उस मसूत्ति का चित्र ्नौर ही रूप में खींच रखा था । उसमें श्रस्तव्यसत वस्त्र परिघान कराये थे, आभषणों का वहिष्कार कराया था, शओछ् की लाली उड़ाई थी, मुख-चन्द्र को चीण तथा रुखे घन केशों




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